Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

View full book text
Previous | Next

Page 719
________________ लेखक परिचय डॉ० मोहन चन्द १९४८ में ग्राम जोयूँ (सुरईग्वेल), अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश में जन्म । सम्पूर्ण शिक्षा दिल्ली में । दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से बी. ए. आनर्स संस्कृत (१९६८) तथा एम. ए. संस्कृत (१९७०) । १६७१ से रामजस कालेज, दिल्ली विश्व० में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य का प्रारम्भ । १९७२ में यू. जी. सी. द्वारा पी-एच. डी. शोधकार्य हेतु फैलोशिप । १९७७ में पी-एच. डी. उपाधि | पिछले पन्द्रह वर्षों से रामजस कालेज, संस्कृत विभाग में अध्यापन तथा सम्प्रति १६८४ से वरिष्ठ प्राध्यापक । दिल्ली विश्वविद्यालय की संस्कृत स्नातकोत्तर कक्षाओं को पुरालिपिशास्त्र एवं जैन साहित्य के इतिहास का अध्यापन । जैन विद्याओं से सम्बद्ध अनेक एम. फिल. एवं पी-एच. डी. के शोध कार्यों का निर्देशन । सामाजिक संस्था 'बाल सहयोग' के माध्यम से पिछड़े वर्ग के क्षेत्रों में पांच वर्ष तक बाल विकास सम्बन्धी समाजकार्यों का संयोजन तथा १९७१ से उक्त संस्था की प्रबन्ध समिति का सदस्य | दिल्ली संस्कृत अकादमी' का सदस्य । 'इन्डियन नेशनल साइंस एकैडमी' द्वारा प्रकाशित मध्यकालीन भारतीय विज्ञानों की संस्कृत अनुक्रमणिका के सम्पादन से सम्बद्ध । 'संस्कृत शोध परिषद्', दिल्ली द्वारा उत्कृष्ट शोध निबन्ध लेखन हेतु दो बार पुरस्कृत । 'भारतीय साथी संगठन' द्वारा १६८६ में विद्यारत्न' सम्मान से अलंकृत । 'आस्था और चिन्तन' के सम्पादन हेतु १६८७ में भारत के राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैलसिंह द्वारा सम्मानित । प्राच्य विद्याओं तथा जैन विद्याओं से सम्बद्ध लगभग ५० शोध लेखों का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन । प्रकाशित रचनाएं :१. एंशियेन्ट इन्डियन कल्चर एण्ड लिटरेचर ( प० गंगाराम स्मृति ग्रन्थ) । सम्पा०, १६८० २. आर्ट ऑफ हन्टिंग इन एंशियेन्ट इन्डिया, सम्पा०, १६८२ ३. योगसूत्र विद मणिप्रभा, सम्पा०, १६८७ ४. प्रास्था और चिन्तन (प्राचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ), सामूहिक रूप से सम्पा०, १६८७ ५. जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज, १६८८

Loading...

Page Navigation
1 ... 717 718 719 720