Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 695
________________ त्रयी/त्रिविद्या ६८, ४२४,४२७, विषयानुफैमणिका गजाश्वपरिचालन ४२१ गदाविद्या ४२६ गन्धयुक्तिविद्या (इत्रविद्या) ४२५ गाथानाराशंसी विद्या ४२० गायनकला २३५, ४२१, ४२७ गुप्तनिधि-अन्वेषण ४२२ चक्रविद्या ४२६ चर्मविद्या ४२६ चापविद्या ५३ ४२६, ४३६ चारणकला ४२७ चिकित्सा २३५, ४०८ चित्रकला २३६, ३४२, ४२१, ४२२, ४२५, ४२७, ४४३४४५ छन्दविद्या/छन्दकला ४२५, ४२७, ४२८, ४२६ ज्योतिषविद्या २३६, ३९६, ४२२, ४२४, ४२५, ४२८, ४२६, ४५०-४५२ शुभलग्न ४५१, मित्रष्टि ४५१, ग्रहों का बलाबल ४५१, ग्रहों का स्वामित्व ४५१, षड्वर्ग शुद्धि ४५१, प्रशुभग्रह ज्ञान ४५१, शुभग्रह ज्ञान ४५१, लग्न, तिथि मुहूर्त विचार ४५२ तक्षणकर्म (बढ़ई गीरी) ४२१ तन्त्रमन्त्रसिद्धि ४२२ तर्कशास्त्र ४०८, ४२० तालोद्घाटिनी विद्या १०३ तुरगलक्षणशास्त्र ४२६ दण्डविद्या ४२६ दण्डनीति विद्या ४२१, ४२४, ४३३, ४३४ दर्शन शास्त्र ४२१, ४२२, ४२४, ४३२, ४३३ लोकप्रिय दर्शन, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, सांख्य दर्शन मीमांसा दर्शन, चार्वाक दर्शन ४३२, न्याय दर्शन का एक स्वतन्त्र विद्या के रूप में विकास ४३३ दुर्गनिर्माण विद्या ४२६ देवजन विद्या ४२० देवशास्त्र ४२० देवालयनिर्माण विद्या ४२६ धनुर्विद्या (धनुर्वेद) ६४, १६८, ४१८, ४२०, ४२२, ४३६, ४३७ विविध प्रकार के बाणों को चलाने का प्रशिक्षण ४३६, धनुविद्या की अभ्यास विधियां-चरणविन्यास, ज्या-स्फालन, लक्ष्य-सन्धान, बाण-विसर्जन ४३६, बाणभेदन, राधावेधन शब्दभेदन, जलनिहित लक्ष्य भेदन, चक्रवेधन, मृतिकापिण्ड भेदन ४३६ धर्मशास्त्र ४२०, ४२१, ४२५ धर्म शिक्षा ४२१

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