Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 698
________________ ६६४: जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज . शल्य चिकित्सा २२६, २३५ साहित्यविद्या (साहित्यशास्त्र) शस्त्रविद्या १५६, २०२. ४३६, ४२२, ४३५ शास्त्रीय एवं सृजनात्मक माक्रमणात्मक शिक्षण ४३५, काव्यलेखन सुरक्षात्मक आयुधों को का अभ्यास ४३५, प्रसिद्ध चलाने की शिक्षा ४३७, कवियों तथा काव्य रचनामों विविध प्रकार के अस्त्र- का अध्ययन ४३५, शब्दशस्त्रों में विशिष्टता क्रीडा एवं वाग्विलास में विशिष्टता ४३५ शिल्पविद्या ४०८, ४२१. स्तम्भनी बिद्या १०३ ४२७ स्त्रीलक्षणशास्त्र ४२७ शिक्षा (वेदाङ्ग) ४२१ स्मातविद्या ४२७ श्राद्धकल्प ४२० स्वप्नशास्त्र (निमित्तशास्त्र) श्रुतिविद्या ४२७ ४२५, ४५४, ४५५ संग्रामकला ४२३ स्वस्तिवाचनकला ४२७ सङ्गीतकला/गान्धर्व विद्या २३५, हम्यं (निर्माण) विद्या ४२६ - ३३२, ३५३, ४२१, ४२२, हस्तिलक्षणशास्त्र ४२६ ४२५. ४३७-४४१ हेतुशास्त्र ४२५ होराशास्त्र ४२५ सङ्गीत की लोकप्रियता विद्याधर ४२३, ५१७ ४३७, ४३८, सङ्गात सबषा विद्याभृत्य २३६ विशेष उत्सव, ४३८, राजकीय विद्यामठ (शिक्षा केन्द्र) ४१६ जन जीवन में सङ्गीत ४३८, विद्यारम्भ की आयु ४०६, ४१० आर्थिक उत्सवों पर सङ्गीत विद्यार्थियों की चौदह श्रेणियाँ ४१५. ४३८, सङ्गीत गोष्ठियां ४३८, सङ्गीत के सप्त स्वर विराट् (पद) १११ ४४०, चतुर्विध ध्वनि ४४१, विवाह-पाठ प्रकार के ४८५ वाद्ययंत्र ४३८-४४० . पार्ष विवाह ४८५, प्रासुर . समुद्रसंस्तरण कला ४२७ विवाह ४८५, गान्धर्व विवाह सर्प क्रीड़ा ४२१ ४८५, देव विवाह ४८५, सर्प विद्या ४२० प्राजापत्य विवाह ४८५, ब्राह्मसांख्य विद्या ४२०, ४२५ विवाह ४८५, राक्षस विवाह सांग्रामिक विद्याएं ४२३ ४८५

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