Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 666
________________ ६३२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज राजधानी के रूप में २५७, नगरों के छह भेद २८५, दस भेद २८३ निर्माण ३४४-३४६, वापी निर्माण ३४५ धर्मशाला निर्माण ३४४, ३४५, प्रपा (प्याउ) निर्माण ३४५, ३४७, राजमार्ग निर्माण ३४७, सरोवर निर्माण ३४६ धिक्कार नीति १०२, १०३ धीरोदात्तनायक ५६, ६२ घूमप्रभा (भूमि) ३८५ ध्यान चतुर्विध ३३३ नकर २४६ नगर ४, ७, ३२, ३३, ५५-५८, ६२, ६४, ६५, ११६, १२०, .१६२, १६७, १६८, २०१, २१२, २१३, २२७ २४२२६५, २६६, २७०, २७२२७८, २८० २८१, २८४, २८५, २६१, ३११, ३४१, ३५०, ३६६ नगर का अर्थ और परिभाषा २४६, वास्तुशास्त्रीय चिह्न २४-२५१, आदर्श नगर का वास्तुशिल्प २५१-२५२ इनका श्रार्थिक वैभव २४६, २४७, इनकी कर से मुक्ति २४६, इनमें क्रय-विक्रय २४७, इनके बाजार २२४-२२८, इनमें भवन विन्यास २४८, इनमें झुग्गी-झोपड़ियों का अभाव २४७, इनमें वेश्यालय २४७ इनमें बौद्धिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां २४६, २४७, नगर (शिक्षा केन्द्र) ४२० नगर की पुनस्थापना २५१ नगर के बाजार २२४, २२७, २२८, २८५ नगरचिह्न २५१ नगर जीवन २४६, २४७ नगर द्वार २४६; २४६ नगर निर्माण (व्यवसाय) २३८ नगर परिखा २४६ नगर प्रधान २७५ नगर भवन २७४ नगरवणिक्संघपरिषद् २७४ नगर वर्णन ५५, ५६, ५७, ५८, ६२, ६४ नगर वेश्या २४७ नगर व्यापारी २७४ नगर शासक २६७ नगर शासन २७५ नगर श्रेष्ठी २७६ नगर सभा २७३, २७४ नगर सेठ २२५, २२६, २९० नगराध्यक्ष (पद) ११६ नगरों का दान २७३ नगरों का स्वामित्व १६२ नगरों के भेद २८५ छह प्रकार के — निगम - नगर, द्रोणक-नगर, पट्टण-नगर, कुब्ज-नगर शिविर-नगर

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