Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 664
________________ जन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज द्वारपाल/वेत्रिन् १२१, २०५ . 'धर्मकथा ४४, ४५, ५०, ५१ द्विमातृका ४१० धर्मनिरपेक्ष शिक्षा मूल्य ४२१ द्वीप ३३, ३५४, ५१०, ५११ धर्म-प्रगति ४०४ सात द्वीप ५१०, नौ द्वीप ५११ धर्मप्रभावना ३१४, ३६०, ४०३ द्वैधीभाव ७५, १५० धर्म प्रासङ्गिकता ३१३, ३१४, घंमिक (धान्य विक्रेता) २३३ पा० ३२० धन/सम्पत्ति ६८, १८६, १६३, धर्ममूलक राजचेतना ६८, ३३१ . ३३१ धमंशाला-जीर्णोद्धार ३४४, ३४५ की व्यक्तिगतभावना १६०, की लालसा १६१, का उपभोग धर्मशास्त्र ५, १२, १३, १४, ३४, १९०-१९२, की सीमा का ६५, ६६, ६८, ६६, ७४ . निर्धारण ३३१ धर्मशास्त्रों की प्रामाणिकता ४०४ धनिक वर्ग २१३, २१४, २४०, धर्म संस्कृति संरक्षण ४२२ ३१३, ४०७ धर्मसूत्र १२, १३, २६, ४११ धर्मसूत्रों में नारी ४५६-४६० २६, ३२, ३४, ६५, ६६, ७८, स्त्री को पराश्रित मानना ४५६, ६३, १००, १८६, ३१३-३८१, बहुपत्नीकता का समर्थन ४६०, ३८३, ३८६, ३८८, ३८६, एक पत्नीव्रत की प्रशंसा ४६०, ४०२ निर्दोष पत्नी का त्याग-एक धर्म का समाजशास्त्रीय स्वरूप भयङ्कर अपराध ४६० ११-१२, ३३३, धर्मशास्त्र और धातु/रत्न/खनिज प्रादि :- . प्राधुनिक समाज शास्त्र १३-१४, अवलगुज १८२ धर्म की परिभाषा ३१३, इसका कर्केतन २२८ . सामाजिक नियंत्रण ३१३, कांस्य ३३३ जागतिक धारण शक्ति के रूप कम्भी १८३ में ३१३, धर्म तथा रिलिजन कोयला १८३, २३६, ३१६ ३१३-३१४, इसकी सामाजिक गंधक १८३ प्रासङ्गिता ३१३, ३१४, ३२०, गारुडमरिण २२८ इसकी सामाजिक विसंगतियां चन्द्रकान्तमणि २२८, २४८ ३१३-३१४, निवृति प्रधानधर्म चांदी १६३, २२४, २२६, ३५६, ३६० इसके शाश्वत २२८, २३१, ३३३, ३३७ और परिवर्तनशील मूल्य ३१४, चांदी से चित्रकारी ३४२ । इसकी साम्प्रदायिक प्रवृत्ति ३१४ जस्ता १८३

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