Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 662
________________ ६२८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज दण्डनेत्र (पद) ११७ ग्राम (एक लाख) ५०४ दण्डप्रधान (राजनीति) ६८ स्वर्णमुद्रा (चौदह कोटि प्रमाण दण्डभेद (गुणस्थान) ३६३ ५०४, ५०५, नाटककार दण्डव्यवस्था १००-१०३ (बत्तीस) ५०४, अन्तःपुर के दण्डाधिकारी (पद) ११६ वृद्ध सेवक ५०४, दास-दासियां दण्डाधिनाथ (पद) ११६ ४७३, ५०४; राज्य कर्मचारी दण्डाधिप (पद) ११६ ५०४, वरलम्बिकाएं (सौ) दण्डाधिपति (पद) ७२, ११६ २०५; पात्र/वस्त्र प्रादि ५०५ दण्डेश (पद) ११६ दान २४६, ३२४, ३२५, ३४६, दण्डेश्वर (पद) ११६ ३५०, ३५३, ३६८ दन्तकार २३२ पा० दान (चंगी) २६१ दन्तयुक्त प्रायुध १७६ दान नीति ७५, ७६, ७७, ७८, दन्तवाणिज्य (व्यवसाय) २३६ ७६, ८०, ८२, १५०, १५१, दर्शन ४, ८, ११, १६, १८, ३६१ १५२, १८५, १९२ दर्शनावरण ३६० दान-प्रशंसा ५०६ दर्शनोपयोग ३८४ भूमि की ५०६, गृह की ५०६, दवप्रद (व्यवसाय) २३९ स्वर्ण की ५०६, पशुमों की दशलक्षणधर्म ३६० दहेज/दहेज प्रथा ९६, १६६, १९८, दानस्तुति ३१, ३७ २००, ५०४-५०६, ५०८, ५०६ दाम्पत्य जीवन १६१, ४७६, ४७७दहेज प्रथा का विरोध ५०६, ५०६ ४७८,४८. प्रस्त्रशस्त्र तथा सम्पत्ति दुःखों दायभाग १३ का कारण ५०६; गाय-बैल दार्शनिक मान्यता ३१४, ३६०, मादि पशु रागद्वेष का कारण ३६३, ३८१, ४०५, ४०६ ५०६, कन्यादान/भूमिदान दार्शनिकवाद (जनेतर) ३७६, ३९२अपुण्यकारी ५०६ ३६३-४०३ दहेज में देय वस्तुओं से मोहनीय सृष्टि विषयक प्राग्रीनवाद कर्मों की वृद्धि ५०६ ३६२-३६५, सांख्याभिमत दहेज वस्तुएं ४७३, ५०४, ५०५ सत्कार्यवाद ३६५-३६६, प्राधा राज्य ५०४, हाथी (गक मीमांसाभिमत सर्वज्ञवावं ३९६हजार) ५०४,५०५ घोड़े (बारह ३६७, बौद्धाभिमत विविध वाद हजार) ५.४, ५०५, रब ५०५ ३६७-३६८, पौराणिक देववाद

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