Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 670
________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज मण्डलनृत्य ४४३, मयूरासन नेगमाः २७२, २७६ बन्धनत्य ४४३, लास्यनत्य . नागरिकों की सङ्गठित समिति ४४२, ४४३, शिरनृत्य तेरह २७२, नगर से सम्बन्धित २७३, प्रकार का ४४२, हल्लीसकनृत्य नगर सभा के रूप में २७३ ४४३, हस्तनृत्य चौसठ प्रकार नैमित्तिक (पद) ११४ का ४४२ नैयायिक ३७६, ३८१ नृत्य व्यवसाय ४८३ नैरात्म्यवाद ३९८ नृपति ८३, ९४ मात्मा के मस्तित्व का निषेध पभोग्य नगर २७६, २८५, २८६ ३९८, बुद्ध की 'करुणा' पर नेगमा २७३ सन्देह ३९८ नेपाल देश के रत्न कम्बल २९७ न्यायदर्शन ३७६, ४०५,४३३ नेमिनाथ (तीर्थङ्कर) ४७, ५१, न्यायव्यवस्था २१, १००, १०१, ३३६, ३७५ नेमिनाथ की पूजा ३३६ नैगम २६४-२७०, २७२, २७६, न्यायशाला २८५ २८२, २८५-२६१ न्यायाधीश (पद) ११६, ११७ निगम का निवासी २६६, २७. न्यायालयीय प्रक्रिया १०८ : वणिक/व्यापारी २८५-२८६ पक्ष-विपक्ष ७६, १०८ निगमशासक २६६, २७० पक्षी १०२, १०४, २२३-२२४ नगरशासक २६७, इसकी मुद्रा प्रशिक्षित पक्षी १०४, पक्षियों से (सील) २७६, नगर सेठ २६०, मनोरंजन २२२, पालतू पक्षी सार्थवाहादि का समूह २८८, २२३, पक्षियों से दुर्व्यवहार, इनका संगठन २८८, एक साथ पाखेटकों द्वारा इनका वध व्यापार करने वाले नाना जाति २२३-२२४ (द्रष्टव्य पशु/पक्षी) के लोग २८७, बहुमूल्य रत्नों पङ्क परिखा २४६ मादि के व्यापारी २८७, पाशु पंकप्रभा (भूमि) ३८५ पत मादि सम्प्रदाय २७८, वेद को प्रमाण मानने वाले २८८, पंचनमस्कार मन्त्र ३२७ राज्य की संवैधानिक समिति पञ्चपरमेष्ठी ३६० २७० पंचविध शरीर ३८८ नेगम धर्म २८७ पंचसन्धि ५८ नेगम नय ३६३, ३७७, ३८२ पञ्चाङ्ग विधि ४१६ नैगम वर्ग २६१ . पंचास्तिकाय ३८३

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