Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 680
________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज मण्डन प्रधान दार्शनिक वाता. भूत चतुष्टय ३६९, ४०० वरण का उदय ३७६, विरोधी पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु ३६६, दर्शनों पर प्राक्रमण ३७६, इनके संयोग से देह-निर्माणिका ३६३-४०३ शक्ति की उत्पत्ति ३९६, इसका भाव ३६३, ३९० अमरचन्द्र सूरी द्वारा खण्डम ४०० भाषा/बोलियां भूतवाद (लोकायतिक) ३९६-४०१, कर्नाटक/कन्नड़ १०५, २५५, ४०६ ३२२, ४३१ इसकी तत्त्वमीमांसा, ३९६, गुजराती १४१, २६२ ४००, भूतवादियों द्वारा पापगोपाल गुर्जरी ४३१ पुण्य, पारलौकिक सत्ता, बात्मा तेलगू ४३१ आदि का खण्डन ३९६, ४००, पंजाबी २६२ सांसारिक भोगविलासों में पाली ४३० आस्था ४००, इसकी बमरप्राकृत ३२०, ४०४, ४०५, चन्द्र सूरि द्वारा मालोचना ४३०,४३१ ४००, ४०१ मराठी १४१, ४३१ भूतवादी ३६६, ४०० शबरी ४३१ भूप/भूपति ८३, ८४, १४ शौरसेनी ४३१ भूपाल/भूभुज ८३, ८४ संस्कृत २३०, २६८, २९३, भूमि ९८, १२५, १३१, १८६, ३२०, ३६३, ४०५, ४३० १९०, १९५, १९७ ४३२ सिन्धी १४१ भूमिदान १२७, १२९, १३२, १ १४२, १९५-१९७, २०१, हरियाणवी २६२ २३६, २४१, ३२२, ३४८ हिन्दी १४१, ३०७ जैनाचार्यों को ३२२, गृहदान भाषा समिति ३६३ १६२, १९३, ३४८, ग्रामदान भिक्षा व्यवसाय २३७ भित्ति (पासादों की) २४८ २४८, ५०४, भूमिदान की भित्ती चित्र ४४३, ४४४ प्रशंसा १६५, १९७, भूमिमिल्लस्वामीमहाद्वादशकमण्डल १०६ दान को निन्दा ५०६, भूमिदान पा० प्रथा १६५ मुक्ति ५१२ भूसम्पत्ति १२५, १३१, १८६, १६० मुज युद्ध १६३ १९६-१९८, २४०, ५०८ भूगोलशास्त्र ५१०-५१३ का अधिग्रहण १३१, का

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