Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 691
________________ विषयानुक्रमणिका ६५७ वणिक-वर्ग २०३, २२७ का निर्माण २०४-२०६, वर्णवणिक् श्रेरिणनाथ २२६ विभाजन की तीन मध्यकालीन वरिणग्याम २८६ श्रेणियाँ-शास्त्रजीवी ब्राह्मण, वधू का चयन ४८६, ४८६, ४६०, शस्त्रजीवी क्षत्रिय, कलाकौशल ४६१, ४६२, ४६५, ४६६ जीवी वैश्य-शूद्र २०२, २०३, वन २१४, २१५, २३६, २३८, २०६ ___२४२, २४४, २५२, २५६, वर्ण विषमता १८५, ३१६ ३८७ वर्णव्यवस्था १२, १३, २५, ३०, वन ग्राम १३८ ६६, २०२-२०४, २०७, २०६, वन जीविका (व्यवसाय) २३८ २४१, २४७, ३१०, ३१५, वनपाल १२१ ३१६, ३२०, ३२१, ४०४, वन्य पशु २२२ ४०७, ४०८ वप्र (अन्तर्वेदी) २४६, २५० वर्ण व्ययस्था की सामाजिक वभित्ति २५० लोकप्रियता ३२०, वैदिक वर का चयन ४८६, ४८६, ४६०, परम्परा की मान्यता ३२१, ४६१, ४६२, ४६५, ४६६, जैनानुमोदित वर्ण व्यवस्था ५०३,५०४ ३२०, ३२१, वर्ण व्यवस्था का वररुचि के वात्तिक ४३० जैनीकरण ३२०, वर्णव्यवस्था वर्ग चेतना २६, २७, ६४, २०५, का जैनीकरण ३२०, वर्ण२४१ व्यवस्था का विरोध ३१६, वर्ण वर्गणा ३८७, ३८८ व्यवस्था के अनुसार व्यवसाय वर्ग संघर्ष ३, २४, २६, ३१८ विभाजन २०२-२०८, वर्ण वर्णमाला ज्ञान ४०६, ४१० व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा४०७, वर्ण विभाजन २०२, २०३, २०६, ४०८, द्रष्टव्य-ब्राह्मण, क्षत्रिय, ३१६ वैश्य, शूद्र वर्ण विभाजन की अतर्कसङ्गतता वर्णव्यवस्थानुसारी पाठ्यक्रम ४२५३१६, इससे मृत्यवर्ग की ४२७ संघटना ३१६, रंग-भेद की अपेक्षा से वर्णभेद का अनौचित्य वर्णव्यवस्थानुसारी व्यवसाय ४२६ ३१६ इससे मानव जाति के वर्ण संकीर्णता २०३ एकत्व पर आघात ३१६, वर्ण- वसुधा उपभोग १९६, २४० विभाजन द्वारा आर्थिक ढाँचे वसुधेश्वर ८४

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