Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 652
________________ ६१८ जैन दीक्षा ४७२ जैन देव ३५२-३५५ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ३५१ प्रतीन्द्र देव ३४६, प्राणत् देव ३५१, ब्राह्मदेव ३५१, माहेन्ददेव ३५१, भूतदेव ३४२, ३५०, यक्षदेव ३५१, ३५०, राक्षस देव ३५०, लान्तव देव ३५१, विद्युत देव ३५०, शुक्र देव ३५१, सभासद देव ३५१, सहस्रधार देव ३५१० सानत्कुमार देव ३५१, सामानिक देव ३४६, सारस्वत दे ३५१, सुपर्णं देव ३५०, सूर्य देव ३५०, ३५१, सेवक देव ३५१, सैनिक देव ३५१, सोधर्म: देव ३५१, स्तनित देवः - ३५१ जैन देवपूजा ३५४जैन देवलोक ३५१ देवत्व का लक्षण ३५५, देवपद की प्राप्ति ३५२, देवगति ३५२, ३५४, देवताओं का जन्म ३५२, देवताओं का शरीर ३५३, देवताओं की प्रायु ३५४, देवताओं का पराक्रम ३५३, देवताओं की विलास चेष्टाएं ३५५, देवांगनाओं के साथ रमण ३५३, ३५५, देव क्रीडाएं ३५४-३५५, देव- तृप्ति के विविध स्तर ३५५ जैन देवः कोटियाँ : अग्नि देव ३५०, अङ्गरक्षकदेव ३५१; अच्युतदेव ३५१; अनिल देव ३५० असुरदेव ३५०, अहमिन्द्रदेव ३५१ प्रादित्यदेव ३५१; अनतदेव ३५१, प्रारण देव ३५१, इन्द्रदेव ३४६, इन्द्र समकक्ष देव ३५१, उदधि देव ३५०, ऐशान देव ३५१, किन्नर देव ३४२, ३५०, ३५१, किंपुरुष देव ३५०, गन्धर्व देव ३५०, गरुड देव ३५०, ग्रह देव ३५०, चन्द्रमा देव ३५०, तारक देव ३५०; दण्डनायक देव ३५१, दिक् देव ३५०, द्वीप देव ३४० ; नक्षत्र देव ३५०; नाग देव ३५० ; निम्नवर्गीय देव ३५१, पिशाच देव ३५०, प्रजा समकक्ष देव अधोग्रैवेयक ३५१, महमिन्द्र ३५१, कुब्वं ग्रैवेयक ३५२, ग्रैवेयक ३५१, मध्य ग्रवयक ३५१ जैन देववर्ग ३५१, ३५४ दशविषभियोग्य३५१, अनीक ३५१, प्रात्मरक्ष ३५६ इन्द्र ३५१, किल्विषक ३५६, त्रयस्त्रिश ३५१, परिषत्त्रय ३५१, .: प्रकीर्णक ३५१, लोकपाल ३५१, सामानिक: ३५१ जैन देवशास्त्र ३१४, ३५०-३५६, २ ४०५ जैन देवों का वर्गीकरण ३५०३५४, इनका स्वरूपः ३५२

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