Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers
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विषयानुक्रमणिका
प्रोपनिषदिक समाज २५
औषधालय २५२, ३४५ औषधालय निर्माण ३४५
श्रौषधि ३२३, ३२६
कक्षा ४१३, ४१६
कक्षा में आतङ्क ४१६ कंचुकथी (दर्जी) २३४ कंचुकी १२१
कटाह ( कड़ाहा) १८० कडारपिङ्गकथानक १३२ करणज ( धान्यपात्र) १०५
कण्टकयुक्त श्रायुध १७८ कण्ठस्थविधि ४१४, ४१८
कथा २७, ५६
कदम्ब शासनव्यवस्था १०६
कन्द्व (हलवाई) २३४ कन्बी १४१
कब्बड २४२, २८०
कमठ १०६-१०८
कर अठारह प्रकार के १४२, २४४
कर प्राप्ति स्थान ३३२
कर वापसी ३३२
करण (पांच) ३६३ करद-कुटुम्बी १४२
कर्णधार ( नाविक ) २३३ पा० २३४
कर्ता - ३५६, ३६४
कर्त्ता - भोक्ता ३८३, ३८४, ३८६ कर्तृत्ववान् ३८६
कर्नाटक / कन्नड भाषा १०५, २५५, ३२२ कर्म १६०, ३८४, ३८६
प्राठ प्रकार के ३८६ कर्मकाण्ड (व्यवसाय) २३६
६०३
कर्मकार ( मजदूर ) १३५, १९६.
२४६, २५७
कर्मक्षय ३६१, ३६२
कर्मचारी (सेवक) २०४, ३२७
कर्मफल ३१७, ३६३, ३६१
कर्मबन्ध ३६५, ३६२
कर्मबन्ध का प्रभाव ३६५
कर्मबन्ध के पांच कारण ३६० :प्रमाद, योग,
मिथ्यादर्शन,
श्रविरति तथा कषाय ३९०
कर्मभूमि ३५७, ३५८
कर्मयोग्य पुद्गल ३६०
कर्मवाद ३७६
कर्मविपाक ३६०
कर्मसिद्धान्त २२, ४३, ३६६
कर्मागमन द्वारा २८६
कर्माश्रव द्वार ३६०
कर्मोपदेश ३६१
कर्वट २४२, २४३, २६२, २८०,
२८४
आठ सौ ग्रामों का श्राधा भाग २८४, प्राकारों तथा पर्वतों से वेष्टित २६२, इसके तीन भेद, २६२
कर्बुटिक २६२, २८४
कवंट का श्राधा भाग २८४ कर्षक १३७
कलम ( धान की पौघ) २११ कलम्बी १४१
कलश ( पूजा द्रव्य ) ३३३, ३३४, ३६६, ३३७
सोने-चांदी के ३३३; दूध, दही,

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