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धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ
(२) पुद्गल ( ३ ) धर्म ( ४ ) धर्म ( ५ ) श्राकाश तथा ( ६ ) काल ।' वराङ्गचरित में इन छह द्रव्यों का उल्लेख प्राया है । चेतनामय तथा चेतनाहीन स्वभावों की दृष्टियों से द्रव्य को मुख्य रूप से दो विभागों में भी रखा जा सकता है जिनकी (१) जीव तथा ( २ ) जीव संज्ञाएं दी गई हैं। 3 तत्त्वार्थसूत्र में द्रव्य की परिभाषा करते हुए कहा गया है कि 'द्रव्य' वही है जिसमें गुण और पर्याय हों । परन्तु वराङ्गचरितकार ने इस परिभाषा को भेद परक दृष्टि से विश्लेषित करते हुए द्रव्य के (१) गुण ( २ ) द्रव्य तथा ( ३ ) पर्याय इन तीन भेदों की परिकल्पना की है। इसी प्रकार (१) रूप ( २ ) ग्रभिरूप ( ३ ) क्रिया तथा (४) गुण भेद से इसके चार भेद संभव हैं । पंचास्तिकाय भेद से द्रव्य के पांच भेद होते हैं । ७ वराङ्गचरित में द्रव्य के छह भेद भी स्वीकार किए गए हैं जो इस प्रकार हैं - ( १ ) जीव (२) पुद्गल, ( ३ ) धर्म ( ४ ) धर्म (५) काल तथा ( ६ ) आकाश 15 जैन दर्शन में 'षड्द्रव्य'विभाजन, जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त, क्रिया-भाव, एक-अनेक, नित्य-अनित्य, सप्रदेशीअप्रदेशी, सर्वगत प्रसवंगत, कर्त्ता-भोक्ता आदि अनेक दृष्टियों से संभव है । इन्हीं नाना दृष्टियों से जटासिंह नन्दि ने भी द्रव्य निरूपण के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया है जो उनके अनुसार 'स्याद्वाद' सिद्धान्त की देन हैं । १०
तत्त्वव्यवस्था
जैन दर्शन के सात तत्व - जैन दर्शन में मुख्यतया सात दार्शनिक तत्त्वों की चर्चा प्राप्त होती है । तत्त्वार्थसूत्र ११ प्रादि ग्रन्थों की भाँति जैन महाकाव्यों में जिन
१. महेन्द्र कुमार, जैन दर्शन, वाराणसी, १६६६, पृ० १४२ वराङ्ग०, २६.५
२.
३ तच्च द्वेधा विनिर्दिष्टं जीवाजीवस्वभावतः ।। वही, २६.२
४. गुणपर्यायवद्द्रव्यम् । - तत्त्वार्थ सूत्र, ५.३७
५.
-- वही, २६.४
७.
तदेव त्रिविधं प्रोक्तं गुणैद्रव्यैश्च पर्ययः । - वराङ्ग०, २६.३ ६. चतुर्धा भिद्यते तच्च रूपारूपक्रियागुणैः । - वही, २६.३ पंचास्तिकायभेदेन पञ्चधा भिद्यते पुनः । जीवपुद्गल कालाश्च धर्माधम नभोऽपि च । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, पृ० ४५४-१६ १०. अर्हन्तमिदं पुण्यं स्याद्वादेन विभूषितम् ।
ε.
८.
- वही, २६.५
३८३
अन्यतीर्थैरनालीढं वक्ष्ये द्रव्यानुयोजनम् ॥ - वही, २६.१
११. जीवाजीवाश्रवबन्धसंवर निर्जरामोक्षास्तत्त्वम् । - तत्त्वार्थ सूत्र, १.४