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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
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पर्व' के साथ ही वर मण्डप से यान द्वारा अपने स्थान पर चला जाता था।' पद्मानन्द महाकाव्य के विवाह वर्णनों का सम्बन्ध गुजरात आदि प्रदेशों से जोड़ा जा सकता है। .
३. सनत्कुमारचकिचरित-सनत्कुमारचक्रिचरित में प्रतिपादित विवाह विधि के अवसर पर सनत्कुमार ने हाथी पर बैठकर मण्डप में प्रवेश किया। कन्याओं को मङ्गल स्नान कराने के बाद चार सधवा स्त्रियों ने वर को वस्त्रादि पहनाए । गुरुजनों ने लाजा-वृष्टि की। कन्या पक्ष की स्त्रियों ने वर के शरीर का संस्कार भी किया ।५ तदनन्तर मधु, घृत, अक्षतादि द्वारा वेदी को प्रदीप्त किया गया । वर एवं वधुओं द्वारा अग्नि की सप्तशिखाओं की प्रदक्षिणा की गई थी। इस अवसर पर स्वर्णदान के अतिरिक्त पात्र, वस्त्राभूषण आदि भी प्रदान किए गए थे। सनत्कुमार चक्रिचरित में चित्रित विवाह विधियां राजस्थान प्रादि प्रदेशों से सम्बद्ध मानी जा सकती हैं।
४. प्रद्युम्नचरित-प्रद्युम्नचरित में विवाह वर्णनावसर पर 'जिनपतिपद
१. मोक्षं शचीपतिरचीक रदञ्चलानाम् । -पद्मा०, ६.१०० तथा ६.१०५ २. प्रासह्य मङ्गलसितद्विरदं कुमारः।
-सन०, १५ ५२ ३. प्रादधुः स्नपनमासान् ।
सधवाश्चतस्र इह चक्रुस्तन्तुसरैर्मुदावमननानि । -वही, १५.३७, ३६ ४. गुरवो निचिक्षिपुरमूषां, लाजकणान् ।
-वही, १५.४ ५. कन्यकावत्कुमारं कुलस्त्रीकुलान्यादधुश्चारुसंस्कारभाजं तनो।
-वही, १५.४७ ६. वेद्यां मधुपाज्यघृताक्षतादिभिः, प्रदीपिते मङ्गलजातवेदसि ।
-वही, १६.१४ ७. तत्पुण्यसर्वस्व इव प्रजम्भिते, हृद्ये शिखाभिश्च तदैव सप्तभिः । प्रदक्षिणावर्त्तमथाभ्रमन्वधूवराः सुमेराविव तारकेन्दवः ॥
-वही, १६.१५ ८. कन्यापिताऽऽद्य परिवर्तने ददो, वराय भारायुतकोटिकाञ्चनम् ।
-वही, १६.१६ ६. हारार्द्धहारादिविभूषणं बहु, पात्रञ्च कच्चोलकटाहकादिकं, अदात् तुरीये वसनानि भूरिशः ।
-वही, १६.१७; १८, १६