Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 627
________________ fasurasafoet अर्धविकसित अर्थव्यवस्था १८६ अलंकार १६, २३, २६, २८, ५८ अलूपीय १०६ अवकाश योगमुद्रा ३६५ अवधिज्ञान ३८१ अवधिज्ञानी ३५७ अवलगक १२६, १३६, १३७ अवलगन १३७ अवसर्पिणीकाल ३५६ अविद्याजनित संस्कार ३५६ अविनाभाव सम्बन्ध ३६७ अविपाक निर्जरा ३६३, ३६१ अविरति ३६२, ३६० वैदिक प्रयोग १३४ अवैध सम्बन्ध १०६ अव्यक्त प्रकृति ३६५ अशुभ कर्म ३९५, ३६८ अशुभ योग ३६३, ३८६ अशोक साम्राज्य ५२८ अश्व (रत्न) १९४ श्रश्वचिकित्सा ४४५ अश्वसेना ७२, १५४, १५६, १६२ अश्वारोही १५६, १८५, १८६ अष्टगुण ऐश्वर्यं ३२६ अष्टमी ३२७, ३४८, ३४६ अष्टविध विवाह ४८५, ४८६ प्रष्टाकपाल ( पुरोडाश) ३६८ असंख्यात प्रावलिकाएं ३५६ असतीपोष (व्यवसाय) २३६ असत् वस्तु ४०१ असमाजिक व्यवहार १७ प्रसि-मसि - कृषि - शिक्षा ४२२ अस्तबल १६३ अस्त्र १०७, १५४, १५८, १६४, १६६, १७५, १७६, १८०, १८८, १९४, २०६ अस्त्र प्रक्षेपक यन्त्र १७६ अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा ४१८ अस्नानयोगव्रत ३६५ अस्पर्शयोगमुद्रा ३६५ ५६३ अस्पृश्य शूद्र २०८ श्रहिंसक समाज ६७ हिंसा ३२८, ३२६, ३५२ हिंसा सिद्धान्त १८६, ३१४, ४०५ अहीर ( गोप) १३०, २२१, २४३, २५५, २५६, २६४ अहीर बालिका २१० अहीरों की बस्तियां २६४ अहीरों के ग्राम १३० अहीरों के स्वामी १३० श्रहेतुवादी ३९५ आकर २४२, २४३, २५२, २५७, २५८, २५०, २५१, ३६६ परिभाषा २५७, नगर के रूप में २५८, खानों के निकटस्थ ग्राम, २५७ धातुत्रों के उत्पत्ति स्थान २५७ आकर प्रवन्ति २५७ आकाश ३८३, ३८६-३८६ सर्वव्यापकता अवगाहनता वैशिष्ट्य ३८६, अनश्वर स्वभाव ३८६ आक्रमणात्मक प्रायुध १६६ आखेट (शिकार) १८, १८६, ३३० आखेटक २२३

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