Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

View full book text
Previous | Next

Page 625
________________ বিমানষিকা ५६१ अनन्तकाय ३३१ अनेकान्तवाद का खण्डन ३७०, अनर्थकारी अर्थ ९७ ३७१ अनर्थकारी अनथं १७ अनेकान्तवाद की तर्कप्रणाली ३७६, अनवस्था दोष ४०३ ३७७,४०३ अनागारधर्म १४, ३२४-३२६, ३५६, अनेकान्तवाद पर प्रहार ३७८ ३६०, ४७० अनेकान्तव्यवस्थायुग ३७५, ४०५ अनाज वितरण केन्द्र २४५, २५५, प्रनोजीविका (व्यवसाय) २३८ अनार्य देश ५११ अन्तःपुर ८१, १२१, १२२, १२४, अनार्य संस्कृति २५ अनिवृत्तिकरण ३६२ मन्तःपुर का रक्षक १३३ अनिश्चयात्मक ज्ञान ३७८ अन्तराय ३६० अनुप्रेक्षा ३६० अन्त्येष्टि १३ अनुबन्धानात्मक प्रेमविवाह ४६२, अन्नभण्डार ११६ ४६३ अन्योन्याश्रय दोष ३६७ अनुभावबन्ध ३६० अन्वयव्यतिरेक बुद्धि ४१७ अनुमहत्तर १२६ अपराध १३, १००, १०७ अनुमान प्रमाण ३६६ अपराधपुष्टि १०८ अनुयोग (पाठ) ३६३ अपराधवृत्ति १०३, १०५ अनुलोम विवाह ४८५ अपराधी १०३ अनेकक्षेत्रावगाही ३८८ अपशकुन ११४, १५७, १५८, ४५३ भनेकच्छत्रराज्य ७८ - ४५४ अनेकान्तवाद ३२०, ३७६-३७६ अपहरण विवाह ४८६, ४६३, इसमें विविध मतों का समन्वय ४६४ ३७६; इसकी तकंवैज्ञानिक अपहरण विवाह और युद्ध ४६४ प्रणाली का विकास ३७६; जटासिंह नन्दि की अवधारणा प्रपाणिनीय प्रयोग १३४ ३७६-३७८; प्रमाणव्यवस्था अपूर्वकरण ३६२ युग की मोर विकास ३७७; . अप्रमत्त संवत ३७२ इसके द्वारा विरोधी मतों का मप्रमाणभूत ज्ञान ३७८ खण्डन ३८७, इस पर विरोधी अप्सरा १०६, ३३०, ३५५ दार्शनिकों का प्रहार ३७८- अभक्ष्य (बाइस प्रकार के) ३३१ अभव्य जीव ३८५

Loading...

Page Navigation
1 ... 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720