Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 626
________________ ५६२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज प्रभिलेख/मुद्राभिलेख/दानपत्र :- अभिषेकशाला (मन्दिर) ३३४, अमरावती स्तुप अभिलेख २७३, ३४१ अशोक के शिलालेख २६८, प्रभौतिक संस्कृति १० ऐहोल शिलालेख ३२२; कर- अमात्य (पद) २२, ७०, ७२, १०६, गुदरि शिलालेख ११६; किराड ११०, ११२ पा० १४५, १५०, शिलालेख ११५; कुषाणकालीन १५६, १५८ मुद्राभिलेख २७४; खलीमपुर अमारि ३३० दानपत्र १२६; गिरनार शिला- अमुक्त वर्ग के प्रायुध १६८, १७४, लेख ३४६; गुप्त अभिलेख, १७५, १७८ १२८; गुप्त-मुद्राभिलेख २७४, प्रयोगकेवली ३६२ २७५; गुप्तदानपत्र १२८; अरिहन्त (पद) ३६० जाजल्लदेव का रत्नपुर अभि- अर्थ १६, ३२, ६५, ८८, ९३ लेख ५२३; जूनागढ शिलालेख अर्थप्रधान राजनीति ६८ २५७; ५१४; दक्षिण भारत के प्रथबाधक अनर्थ ९७ शिलालेख २८६ नालन्दा दानपत्र अर्थव्यवस्था २१, ३१, १२५, १२७, १२८; नासिक प्रशस्ति २५८%; १३७, १४१, १८६-२०२, नासिक शिलालेख २७४, ५१५ २०६, २३९, २४० पत्तन अभिलेख २५६; पालवंश का संस्थागत स्वरूप, १८६, के दानपत्र १२८, १३२; मार्थिक संस्था तथा भारतीय बनारस दानपत्र १२८; बसई प्रार्थिक विचारक १९०-१६१, दानपत्र १२८; बसाढ़ के सम्पत्ति उपभोग तथा जैन मुद्राभिलेख २६४, २६५; नवनिधियां १९२, मध्यकालीन बिजोल्या शिलालेख १४२;भट्टि- अर्थव्यवस्था का स्वरूप १९४प्रोलु शिलालेख २७२, भीटा १९५, मध्यकालीन प्रपंचेतना मुद्राभिलेख २७२, २७४; मल्क- १६७. भूस्वामित्व का पुरम् अभिलेख ५३३; माउण्ट- हस्तान्तरण तथा विकेन्द्रीकरण प्राब प्रशस्ति ३४४; मोंग्यार १९७-१९६; सामन्ती ढांचा दानपत्र १२८, रुद्रदामन शिला १६०-२०१ लेख २६८, २६६ २७४; अर्थसाधक अर्थ ९७ वसिठ्ठिपुत-अभिलेख १३६; प्रर्यापत्ति प्रमाण ३९६, ३९७ विक्रमादित्य के शिलालेख १४४ अर्धचक्रवर्ती ८३, ८४ सन्खेडा दानपत्र २६५; हर्षनाथ अर्घचण्द्राकार शस्त्र १७६ का शिलालेख १४२ मधमण्डलेश्वर ८३

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