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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
से प्रभावित होकर राजा कुमारपाल द्वारा जैन धर्म को अङ्गीकार करना इस युग की एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। वैसे ही जैन धर्मानुयायी राजा ब्राह्मण धर्म के मन्दिरों का भी दर्शन करते थे। जैनाचार्य हेमचन्द्र ने सोमनाथ की स्तुति में एक स्तोत्र की रचना भी की थी। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट होता है कि ब्राह्मण एवं जैन धर्म मध्यकाल में एक दूसरे के पर्याप्त निकट आ गए थे तथा राजकीय स्तर पर भी दोनों धर्मों की धार्मिक सहिष्णुता को बनाए रखने का विशेष प्रयास किया जाता था।
राजनैतिक दष्टि से अनेक राज्यों में जैन धर्म एक लोकप्रिय धर्म के रूप में उभर कर आया है। कदम्ब, राष्ट कूट, चालुक्य, गंग आदि अनेक राजवंशों ने जैन धर्म को अपने राज्यकाल में विशेष राजनैतिक संरक्षण भी प्रदान किया। सातवीं शताब्दी ईस्वी के लगभग बादामी के चालुक्य राजानों के काल में दक्षिण भारत में जैनधर्म राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित हुआ । जैनधर्म के प्राचार्यों ने इस काल में भी धार्मिक अवसरों पर की जाने वाली पशुहिंसा का धोर विरोध किया। गुजरात के इतिहास में राजा कुमारपाल के समय में तो एक ऐसा समय भी पाया जब जैन धर्म के अहिंसा सिद्धान्त को राजकीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई तथा राज्य की सभी कसाइयों की दुकानों को बन्द करवा दिया गया और उनकी आजीविका का व्यय राज्य की ओर से उठाया जाने लगा। जैन महाकाव्यों में जैनेतर धार्मिक सम्प्रदायों की गतिविधियां भी प्रतिबिम्बित हुई हैं। इस काल में हिन्दू धर्म पूर्णतया पौराणिक मान्यतानों से प्रभावित हो चका था। गजरात आदि प्रदेशों में वैदिक यज्ञों आदि के अनुष्ठान अत्यन्त लोकप्रिय थे । देवी पूजा के अवसर पर बलि प्रथा की परम्परा भी प्रचलित थी। हिन्दू धर्म के आराध्य देवों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, इन्द्र, अग्नि, कार्तिकेय आदि विशेष रूप से उस्लेखनीय हैं । शैव, वैष्णव, सौर आदि सम्प्रदायों का भी विशेष प्रचलन था। इस काल में सोमनाथ, बैजनाथ , कुरुक्षेत्र, पुष्कर आदि हिन्दुनों के प्रसिद्ध तीर्थस्थान रहे थे।
दार्शनिक विचारों के सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि महाकाव्यों के युग का जैन दर्शन 'अनेकान्त व्यवस्था' युग से विचरण कर रहा था। जटासिंह नन्दि आदि दार्शनिकों ने अनेकान्त दर्शन की तार्किक प्रणालियों को नवीन पायाम प्रदान किए हैं । महाकाव्य युग के जैन दार्शनिकों ने अपनी तत्त्वमीमांसा को 'अनेकान्तवाद' तथा 'स्याद्वाद' को अवधारणाओं से पर्याप्त पैना बना लिया था। इनकी सहायता से बौद्ध , सांख्य, न्याय, मीमांसा, वेदान्त प्रादि दार्शनिक सम्प्रदायों की तत्त्वमीमांसा का आसानी से खण्डन किया जा सकता था। खण्डन-मण्डन की प्रवृतियों से अनुप्रेरित महाकाव्य युग का जैन दर्शन भारतीय दर्शन की समग्र चेतना से पूर्णतया प्रभावित था। मध्यकालीन अन्य दार्शनिक विचारों के विकास की दृष्टि से भौतिकवादी एवं लोकायतिक दर्शनों की तर्क प्रणाली युगीन सामन्तवादी भोगविलास के