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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
अनुसार 'साबरमती' से प्रभिन्न है । नन्दि
२३. श्वभ्रवती' – सरकार के
कुण्ड से निकलती हुई यह अरब सागर में गिरती है ।
२४. शीतोदा - जैन भूगोल के अनुसार पुष्करार्घद्वीप के अपर विदेह क्षेत्र की एक नदी ।
२५. जलवाहिनी – घातकी खण्ड द्वीपस्थनदी ।
२६. वरदा - विदर्भ देश की एक प्रसिद्ध नदी 15
३. देश-प्रदेश
राजा के दिग्विजय
जैन महाकाव्यों में विभिन्न देशों का वर्णन या तो किसी आदि के सन्दर्भ में अथवा किसी देश के नगरों श्रथवा ग्रामों के विस्तृत वर्णन के अवसर पर आया है। पौराणिक शैली के महाकाव्यों के देश-वर्णन जैन भौगोलिक मान्यताओं के अनुरूप हुए हैं। किसी देश विशेष की वास्तविक भौगोलिक परिस्थिति का किसी निश्चित कालावधि में सीमा निर्धारण करना अत्यन्त दुष्कर है । यह कार्य तब और भी कठिन हो जाता है जब किसी एक देश की स्थिति को स्पष्ट करने में आधुनिक इतिहासकार एकमत नहीं दिखाई देते । जैन महाकाव्यों में वर्णित देश-प्रदेशों की स्थिति इस प्रकार है :
१. कोशल १० – कोशल अथवा कोसल देश दो भागों में विभक्त था, उत्तर
१. द्वया०, ६.४५
२.
३. चन्द्र०, २.११४
४. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० ५०७
५.
चन्द्र०, १३.५३
६. अमृतलाल, चन्द्र०, पृ० ५५३
७.
धर्म०, १६.८३
८.
पन्नालाल, धर्म०, पृ० ३८०
६. अङ्गाश्च वङ्गा मगधाः कलिङ्गाः सुह्माश्च पुण्ड्राः कुरवो ऽश्मकाश्च । श्राभीरकावन्तिककोशलाश्च मत्स्याश्च सौराष्ट्रकविन्ध्यपालाः ॥ महेन्द्रसौवीरकसैन्धवाश्च काश्मीर - कुन्ताश्चरका सिताह्वाः ॥
प्रोद्राश्च वैदर्भवेदिशाश्च पञ्चालकाद्याः पतयः पृथिव्याम् ।
Dey, Geog. Dic., p. 171
वराङ्ग०, १६.३२-३३ तथा चन्द्र०, १६.२५-५१, धर्म०, १.४३ १०. वराङ्ग०, १६.३२; धर्म ०, १.४३; द्वया०, ५.७६