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शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान
तथा चारों वेदों के ज्ञाता को 'चतुर्वेद:' संज्ञा दी जाती थी । वैदिक पाठों का भी अध्ययन किया जाता था । ऋग्वेद के 'शाकल' 3 यजुर्वेद के 'कठ' पाठों का भी उल्लेख आया है। इन वैदिक पाठों के अतिरिक्त 'वाजसनेय', 'खाण्डकीय' 'शोनक' 'औख' 'छागलेयी'५ 'छान्दोग्य', याज्ञिक्य', 'बाह वृच्य', 'श्रकथिक्य' 'आथर्वण' तथा 'काठक' आदि वैदिक पाठों का भी द्वयाश्रय महाकाव्य में उल्लेख श्राया है।
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२. वेदांग - निरुक्त, शिक्षा, व्याकरण, १० कल्प, ११ ज्योतिष १२ तथा छन्द' को 'षडंग' संज्ञा भी दी गई है । निरुक्त को 'अनुपदिक'' कहा गया है । इसके अतिरिक्त कर्मकाण्डविद्या के अन्तर्गत 'अग्निष्टोम' आदि यज्ञ उल्लेखनीय हैं । १५ उपर्युक्त 'षडंगों में से निरुक्त का शब्दव्युत्पत्ति, शिक्षा का वैदिक उच्चारण, व्याकरण का वैदिक शब्दानुशासन, कल्प का याज्ञिक कर्मकाण्ड, ज्योतिष का ग्रहनक्षत्रादि तथा छन्द की मन्त्र रचना की दृष्टि से उपादेयता थी । १६ वेदांगों के माध्यम से वेदों का अध्ययन-अध्यापन भी किया जाता था ।
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३. व्याकरण १७ – वेदाङ्गों में ही । इसके अतिरिक्त लौकिक संस्कृत महाकाव्यों में व्याकरण के महत्त्व को स्वीकार किया गया है । द्विसन्धान महाकाव्य
वेदों की दृष्टि से व्याकरण का महत्त्व तो था अध्ययन की दृष्टि से भी जैन संस्कृत
१. परि०, १३.८
२. Narang, Dvyāśrayakāvya, p. 206
३. द्वया०, १६.८५
४. वही, १६.८८
५. वही, १६.८६
६. वही, १६.८८
७. आदि०, २.४८; द्वया०, २५.१२०
८. आदि०, २.४८
६. वही, २.४८
१०. वही, २.४८
११. श्रादि०, २.४८ द्वया०, १५.१२०-२१
१२. आदि०, २.४८; द्वया०, १६६४
१३. आदि०, २.४८; द्वया०, १६.४६
१४. द्वया०, १५.११८
१५. Narang, Dvyāśrayakāvya, p. 207
१६. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ५७१-७२
१७. वराङ्ग०, २.५; द्विस०, ३.३६; आदि ० २.४८; त्रिषष्टि०, २.३२२; द्वया०,
१६.१, १६.८८, १६.६२