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२२. ताल '
२५. वंश ४
२८. परणव ७
वीणा-भेद
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
२४. घण्टिका
२७. हल
३०. मुरज
२३. झल्लरी
२६. मर्दल
२६. घण्टा
वाद्य यंत्रों में वीणा अत्यधिक लोकप्रिय यन्त्र रहा है । नेमिचन्द्र शास्त्री ने जीन कुमारसंभव के टीकाकार जयशेखरसूरि के कथनानुसार चौदह प्रकार की वीणाओं का उल्लेख किया है जिनके नाम इस प्रकार हैं
(१) नकुलोष्ठी (२) किन्नरी ( ३ ) शततन्त्री ( ४ ) जयाहस्तिका ( ५ ) कुब्जिका ( ६ ) कच्छपी (७) घोषवती ( ८ ) सारङ्गी ( ६ ) उदुंबरी (१०) तिसरी (११) ढिबरी (१२) परिवादिनी (१३) श्रालाविणी तथा (१४) वल्लकी । १०
स्वर - राग एवं मूर्च्छनाएं
सङ्गीतशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार सप्त स्वर उनचास राग एवं इक्कीस मूर्च्छनाएं प्रसिद्ध हैं । प्रासङ्गिक रूप से जैन महाकाव्यों में भी इन शास्त्रीय परिभाषाओं पर यत्र तत्र प्रकाश डाला गया है । तत्सम्बन्धी विवेचन इस प्रकार है
१. सप्त स्वर - पद्मानन्द महाकाव्य में षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत, निषाद - इन सप्त स्वरों को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि मयूर
१. वराङ्ग० (वर्ध), ११.६२; वराङ्ग०, २३.१०; द्वया०, २.७१
२.
धर्म ०, १८.४५; वसन्त०, १०.७१
३. वसन्त०, १०.७१
४. वराङ्ग०, १७.४०, २३.१०
५. वही, १७.४०, २३.१३
६. वही, १७.४०, २३.६
७.
वही, १७.४०, २३.१०
८.
वराङ्ग०, १७.४०
६. वही, २४.५ तथा वाद्ययन्त्रों के विशेष विवरणार्थं द्रष्टव्य - नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३१५ - २०; सुषमा कुलश्रेष्ठ, कालिदास साहित्य एवं वादनकला, दिल्ली, १९८६, पृ० २७ - १६६
१०. नेमिचन्द्र शास्त्री संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ५६६; सुषमा कुलश्रेष्ठ, कालिदास साहित्य एवं वादन कला, पू० ३५-५४