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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
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वराङ्ग को उत्तराधिकार से च्युत करने के लिए पूरे प्रयत्न किए थे ।' २. स्वयंवर विवाह
, पालोच्य महाकाव्यों में स्वयंवर के भी अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं।' स्वयंवर-विवाह पद्धति प्रायः क्षत्रिय कन्याओं में विशेष रूप से प्रचलित थी। स्वयंवर विवाह के पीछे कन्या द्वारा सर्वाधिक सुन्दर एवं पराक्रमी वर के चयन करने की अभिलाषा निहित थी। कन्या का पिता स्वयंवर की घोषणा के लिए सभी राजारों के पास अपना दूत भेजता था और साथ ही कन्या का चित्र भी भेजा जाता था। राजा कन्या के चित्र को देखकर दूत को स्वयंवर में सम्मिलित होने या न होने का निर्णय देते थे। धर्मशर्माभ्युदय में दूत द्वारा राजकुमारी शृङ्गारवती के स्वयंवर में राजा प्रतापराज द्वारा भेजे गए कन्या के चित्र को देखकर ही धर्मनाथ के पिता ने स्वयंवर में उपस्थित होने की सहमति दे दी थी। प्रायः स्वयंवर विवाह में कुल, शील तथा वय का की विचार किया जाता था किन्तु वर एवं वधू में परस्पर अनुराग भावना प्रकट होना भी इसकी विशेषता थी। कन्या
१. यथा पितभ्यां प्रहितोऽस्मदर्थ तथोपकारो भवता कृतश्च । निवर्त्य तस्याद्य हि यौवराज्यं सुषेणमास्थापय यौवराज्ये ।
-वराङ्ग०, १२.१४, १५ २. तस्याभवत् प्रियतमा गुणपक्षपाताल्लक्ष्म्याः स्वयंवर कृता प्रथमा सपत्नी।
-द्विस०, २.३० नूनं विहायनमियं स्वयंवरे वरायिनी नापरमर्थयिष्यति । -धर्म० ६.३६ श्रियो मूर्त्यन्तराणीव, शतशो अथ स्वयंवराः ।। तेन राजा राजकन्या, महर्द्धया पर्यणायत् ।। -त्रिषष्टि०, २.३,७४, तथा तु०-वर्ष०, सर्ग ६, तथा जयन्त०,
__ सर्ग १६ ३. प्रायः क्षत्रियकन्यानां शस्यते हि स्वयंवरः। -परि०, ८.३२० . ४. स्वयंवरकृता स्वयं परोपदेशमन्तरेण वियते परिणीयते राजपुत्र्या राजपुत्रो
यत्रासौ स्वयंवरः । -द्वि० २.३० पर पद० टीका, पृ० ३४ ५. घोषणां कारयामास स्वयंवरविधि प्रति ।
-उत्तरपुराण, ७५.६४७, तथा धर्म०, ९.३३ ६. धर्म०, ९.४२ ७. सर्वत्र सम्बन्धविधानकारणं प्रियस्य यत्प्रेम गुणैनिशिष्यते ।
-धर्म०, ६.४० तथा १७.७८