Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 522
________________ ४८८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज मन्त्रियों की सम्मतियों का सम्मान करते हुए दस देशों के राजाओं की कन्याओं से वराङ्ग का विवाह करने का निश्चय किया। तंस्कालीन राजनैतिक पृष्ठभूमि में उपर्युक्त विवाह विषयक मन्त्रणामों से स्पष्ट हो जाता है कि राजकुमारों के विवाह करने से पूर्व सभी प्रकार की सम्भावित राजनैतिक परिस्थतियों की आलोचना-समालोचना करली जाती थी तथा उन सभी पक्षों पर ध्यान दिया जाता था जिनसे परराष्ट्र नीति प्रभावित हो सकती थी और उन वैवाहिक सम्बन्धों को ही वरीयता दी जाती थी जिनसे राजनैतिक सुदृढ़ता बढ़े ।२ बहुविवाह पद्धति इस युग में एक प्रभावशाली राजनैतिक उपाय के रूप में प्रयोगान्वित की जा रही थी। अनेक राजाओं की कन्याओं से विवाह सम्बन्ध स्थापित कर राजा लोग अपनी शक्ति बढ़ाना चाहते थे । वराङ्गचरित के एक अन्य उल्लेख से यह भी ज्ञात होता है कि कुछ राजा विवाह-सम्बन्धों द्वारा राज्य में गुप्त रूप से षड्यन्त्र की गूढ योजनाओं के कार्यान्वयन में भी लगे हुए थे। राजा धर्मसेन की एक पत्नी के साथ पितगह से पाए सुबुद्धि नामक मंत्री ने राज्य में ऐसा ही षड्यन्त्रकारी कुचक्र रच कर कुमार .. १. वराङ्ग०, २.६६ २. तु० -Some times marriages among the ruling classess were arranged by parents on political grounds. When Rajaraja Chola was ruling over the southern kingdom, there was confusion in the Vengi Mandala. So he brought that territory under bis control and set up Śaktivarman, the Eastern Chalukyan king as the head of Vengi Mandala. In order to strengthen the relation between the two kingdoms he gave his daughter Kunda Devi in marriage to Vimalāditya, the crown prince of the Eastern Chalukyas... Like this we have several instances of marriage arranged on political grounds. - Krishnamoorthy, A. V., Social and Eeonomic Conditions in Eastern Deccan, Madras, 1970, pp. 71-72

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