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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
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गर्भपात कराने की सम्मति देती है,' किन्तु कुबेरसेना गर्भस्थ बालक के प्रति अत्यधिक स्नेहभाव होने के कारण ऐसा नहीं करती।
नर्तको तथा वारांगना
हम्मीर महाकाव्य में सैनिकों के मनोरंजनार्थ प्रायोजित शृङ्गार-गोष्ठी में एक नर्तकी द्वारा श्रेङ्गारिक भावों को उद्दीप्त करने वाले नृत्य का वर्णन मिलता हैं। ३ वेश्यानों के समान नर्तकियां भी नृत्य व्यवसाय करने लगी थीं। हम्मीर महाकान्य के अनुसार एक राजा दूसरे राजा को प्रसन्न करने के लिए नर्तकियों को भी भेजते थे । गूर्जर नरेश ने हरि राज के पास नर्तकियां भेजी थीं। आदिपुराण में वारांगना का भी उल्लेख पाया है ।५ नेमिचन्द्र शास्त्री महोदय के अनुसार वारांगना केवल मात्र धार्मिक महोत्सवों के अवसर पर नृत्य करती थी तथा इसका सम्मिलित होना मंगलसूचक माना जाता था। प्रादिपुराणोक्त वारांगना को मन्दिरों को देवदासियों के तुल्य स्वीकार किया गया है तथा इन्हें वेश्याओं से भिन्न माना गया है।
सती प्रथा का विरोध
वरांगचरित महाकाव्य में सती प्रथा की ओर संकेत किया गया है। राजकुमार वरांग के लापता हो जाने पर उसकी अनेक पत्नियों में से एक पत्नी द्वारा अपने श्वसुर से अग्नि-प्रवेश कर प्राणान्त करने की प्राज्ञा मांगने का स्पष्ट उल्लेख पाया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज में पति की
१. सा च प्रथमगर्भेण नितान्तं खेदिता सती । माताप्युवाच तां वत्से गर्भ ते पातयाम्यहम् ।।
-परि०, २.२२८ २. वेश्योचे स्वस्ति गर्भाय सहिष्ये क्लेशमप्यहम् ।
-परि०, २.२२६ ३. हम्मीर०, १३.१-२५ ४. वही, ४.२-५ ५. आदि० ७.२४३-४४ ६. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० १८३-८४ ७. न जीवितुमितः शक्ता विना नाथेन पार्थिव ।
त्वया प्रसाद: कर्तव्यः पावकं प्रविशाम्यहम् ।। -वराङ्ग०, १५.६२