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शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान
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उल्लेख मिलते हैं । प्रायः स्त्रियों के सौन्दर्य-प्रसाधनों में चित्रकला का विशेष स्थान बन गया था । कस्तूरी - रस से कपोलों पर मकरी के चिह्न प्रादि बनाकर शृङ्गार करने की प्रवृत्ति भी देखी जाती है । इसी प्रकार पत्र लताओं को प्रारोपित करना, चन्दन का सुन्दर तिलक लगाना प्रादि सौन्दर्य प्रसाधन की प्रविधियां चित्रकला से विशेष रूप से प्रभावित थीं । स्त्रियों की शृङ्गारपरक सौन्दर्य भावना प्रकट करते हुए महाकवि हरिचन्द्र ने कामदेव रूपी कायस्थ द्वारा सुलोचना स्त्री की दृष्टि रूपी लेखनी एवं कज्जल रूपी स्याही से तारुण्य लक्ष्मी के शृङ्गार-भोग सम्बन्धी शासनपत्र लिखने की सुन्दर कल्पना की है। 3
(ग) ज्ञान विज्ञान
१. श्रायुर्वेद
आलोच्य युग में 'आयुर्वेद' एक उच्चस्तरीय अध्ययनविषय के रूप में अत्यधिक लोकप्रिय विषय था । ४ पद्मानन्द महाकाव्य में अष्टांग प्रायुर्वेद का उल्लेख आया है । ५ स्थानाङ्गवृत्ति के अनुसार ये आठ अङ्ग हैं ( १ ) शल्य तंत्र २. शालाक्य ३. कायचिकित्सा ४. भूतविद्या ५. कौमारभृत्य ६. अगदतंत्र ७. रसायनतंत्र तथा ८. वाजीकरण तंत्र । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में भी प्रोषधविज्ञान के रस- वीर्य विपाक ज्ञान सहित प्रष्टाङ्ग आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करने की चर्चा आई है । ७ गज तथा अश्वचिकित्सा क्रमशः 'गजशास्त्र' तथा 'अश्वशास्त्र' अन्तर्गत समाविष्ट थी । द्वयाश्रय महाकाव्य में बाल रोगों से सम्बद्ध 'शशुक्रन्द' नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ का उल्लेख भी मिलता है ।
१. तूलिकोल्लिखित चित्रविभ्रमम् । - धर्म०, ५.५, तथा १४.६६
२. एगनाभिरसनिर्मिर्तकया पत्रभङ्गिमकरी कपोलयोः । वही, ५ . ५१ कायस्थ एव स्मर एष कृत्वा इग्लेखनीं कज्जलमञ्जुलां यः । शृङ्गार-साम्राज्य विभोग-पत्रं तारुण्य-लक्ष्म्याः सुडशो लिलेख ||
३.
-- वही, १४.५८
४. पद्मा०, ६.१७ ४५; यशो०, ३.४
५.
पद्मा०, ६.१७
६. पद्मा०, ६.१७ पर उद्धृत स्थानाङ्गवृत्ति, पृ० ४२
७.
सर्वौषधीरसवीर्यविपाकज्ञानदीपकम् । प्रप्यायुर्वेदमष्टाङ्गमध्यैष्टाऽकष्टमेव सः ।।
— त्रिषष्टि०, २.३.३०
८. सोऽज्ञासीद् गजलक्षणम् । चाश्वलक्षणं सचिकित्सितम् । - वही, २,३.३२-३३
ε.
द्वया०,
१६.६५