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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
महत्त्वपूर्ण अवसरों' पर तथा सङ्गीत गोष्ठियों में सङ्गीत कला का शास्त्रीय रूप भी विशद हुआ है । सङ्गीत विशारद विशेष उत्सवों में अपनी कला का प्रदर्शन करते थं । इसके अतिरिक्त राज्य के दैनिक क्रियाकलापों में भी सङ्गीत का विशेष स्थान था । सङ्गीत के विविध वाद्य यंत्रों में तूर्य ( तुरही) पटह (नगाड़ा) आदि वाद्ययंत्र विविध राजकीय गतिविधियों की सूचना देने के महत्त्वपूर्ण साधन थे । हम्मीर महाकाव्य में उल्लेख प्राया है कि मृदङ्ग आदि से बन्दीगण प्रातः काल होने की सूचना देते थे । चन्द्रप्रभचरित के अनुसार राजा के प्रस्थान की सूचना देने वाले मृदङ्ग आदि वाद्य यंत्रों से नगर वासियों को सचेत किया जाता था । पटह श्रादि वाद्य यन्त्रों से युद्ध प्रयाण की सूचना दी जाती थी । देव मन्दिरों में पूजा के अवसर पर भी सङ्गीत एवं नृत्य प्रयोग द्वारा आराध्य देव को प्रसन्न करने की विशेष प्रवृत्ति रही थी । सङ्गीत गोष्ठी प्रादि क्रिया-कलापों का सम्बन्ध विशुद्ध रूप से मनोरंजन से जुड़ा हुआ था । हम्मीरमहाकाव्य में इस प्रकार की सङ्गीत गोष्ठी के आयोजन का उल्लेख श्राया है जिसका उद्देश्य सैनिकों का मनोरंजन करना था । ७
वाद्य यंत्र
विभिन्न धार्मिक महोत्सवों, ररण प्रयाणों, सङ्गीत-गोष्ठियों आदि भवसरों पर विविध प्रकार के वाद्य यंत्रों का प्रायः प्रयोग होता था जिनमें मृदङ्ग, वीणा, वेणु, पटह, भेरी, वल्लकी, तुर्य आदि वाद्ययंत्र विशेष रूप से लोकप्रिय थे । जैन संस्कृत महाकाव्यों में निम्नलिखिम वाद्य यन्त्रों का उल्लेख आया है
१. महोत्सववाद्यमिव । नरनारा०, ५.४६, तथा तु० - वरवंशमृदङ्गगीतशब्दान् मुरजध्वनिविमिश्रितान्स रागान् ।
—वराङ्ग०,
२. गीत दङ्गध्वनिवेणुवल्लकीनादानुगं मद्यतु मेदिनीपते ।
- पद्मा०, ३.१३३ ३. गन्धर्वगीतश्रुतितालवंशमृदङ्गवीणापणवादिमिश्रः । — बराङ्ग०, २३.१० ४. मार्दङ्गिकैस्तावदवादि सद्यः प्रत्यूषसूचा सुभगो मृदङ्गः ।
- हम्मीर०, ८.७
६.४४
प्रबोधसमये तवोल्लसितकालमार्दङ्गिकाङ्कितः । - वसन्त०,
२४.५
५. द्रष्टव्य प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १५७ ६. वही, पृ० ३३९
७. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २५०