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धामिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ
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गौ की सिद्धि हो पाती है किन्तु 'सर्वज्ञ' सदृश' अन्य पुरुष के अभाव के कारण उपमान प्रमाण भी प्रवृत्त नहीं हो पाता।' ४. अन्योन्याश्रय दोष से युक्त होने के कारण अागम प्रमाण द्वारा भी 'सर्वज्ञ' प्रसिद्ध ही रह जाता है ।२ ५. विनाभाव सम्बन्ध का प्रतिपादन होने के कारण 'अर्थापत्ति' द्वारा भी 'सर्वज्ञ' की सिद्धि नहीं हो सकती।
बौद्धाभिमत विविध वाद ७. शन्यवाद
बौद्ध दार्शनिकों के एक सम्प्रदाय के अनुसार यह जगत् शून्य-स्वरूप है। अविद्या के कारण इसी शून्य से जगत् की उत्पत्ति मानी गई है। इस वाद पर अ'क्षेप करते हुए जटासिंह नन्दि का कहना है कि चल-अचल पदार्थों को शून्य की संज्ञा देने से न केवल पदार्थों का ही प्रभाव होगा, अपितु ज्ञान भी शून्य अर्थात् प्रभावस्वरूप हो जाएगा, जिसका अभिप्राय है संसार के समस्त जीवों को ज्ञानशून्य मानना ऐसी स्थिति में शून्यवादी तत्त्वज्ञान को ग्रहण करने के प्रति भी असमर्थ रह जाएगा। इस सम्बन्ध में जटाचार्य का अभिमत है कि पदार्थों के किसी एक विशेष रूप में न रहने से उस पदार्थ को सर्वथा शून्य मानना अनुचित है, क्योंकि पदार्थ किसी एक रूप में नष्ट हो जाने के बाद भी सत्तावान् रहते ही हैं । ८. क्षणिकवाद
बौद्धों के एक दूसरे सम्प्रदाय द्वारा सभी भावों एवं पदार्थों को क्षणिक मानने की मान्यता का खण्डन करते हुए जटासिंह नन्दि कहते हैं कि शुभ तथा १. सर्ववित्तोपमानेन प्रमाण:ष गृह्यते।।
प्रवर्तते हि सादृश्यात्तद्गोगवययोरिव ॥ -जयन्त, १५.२५ परेषां नागमेनापि सर्ववित्साध्यते बुधैः । अन्योन्याश्रयदोषो हि निर्विवादोऽत्र वादिनाम् ।।
-वही, १५.२६ ३. नापत्तिप्रमाणं च सर्वज्ञास्तत्त्वसिद्धये ।
तत्र साध्याविनाभावभावो यत्रास्ति कश्चन् ।। -वही, १५.२७ ४. यदि शून्यमिदं जगत्समस्तं ननु विज्ञप्तिरभावतामुपैति ।
तदभावमुपागतोऽनभिज्ञो विमति: केन स वेति शून्यपक्षम् ।।
-वराङ्ग०, २४.४४
५. अथ सर्वपदार्थसंप्रयोगः सुपरीक्ष्य सदसत्प्रमाणभावान् । न च संभवति ह्यसत्सुशून्यं परिदृष्टं विगमे सतो महद्भिः ।।
-वही, २४.४५