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प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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महाराष्ट्र के अमरावती जिले में अम्भोरा नदी के तट पर 'तिवरखेट' तथा 'घुइखेट' (आधुनिक घुइ खेड) नामक दो ग्राम बसे हुए थे ।' लोह नगर 'भोग' में भी 'अश्वत्थ खेटक' तथा 'वरद खेट' के अस्तित्व की पुष्टि प्रवरसेन द्वितीय के 'पत्तन-अभिलेखों' से मिलती है । दद्द के 'सन्खेडा दानपत्र' के साक्ष्य से अन्य दो 'खेटक' एवं 'खेड' नामक निवासार्थक इकाइयों की भी सूचना मिलती है। इनमें से 'सङ्गम खेटक' विषय के रूप में तथा 'सन्खेडा' जिले अथवा प्रान्त के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। इन दोनों की स्थिति गुजरात में थी।४ 'खेट' के आर्थिक विकास क्रम के ये दोनों उत्कृष्ट उदाहरण कहे जा सकते हैं। इस प्रकार 'खेट' प्राचीन भारत की निवासार्थक नगर भेद की महत्त्वपूर्ण इकाई रही है । प्रारम्भ में ये अर्घ-विकसित गांवों के रूप में थे तदनन्तर आर्थिक विकास की निरन्तर उन्नति से ये 'खेट' नगर, विषय, तथा प्रान्त तक की भौगोलिक सीमा तक व्याप्त होते गए। आधुनिक 'खेड़ा' से 'खेट' की तुलना की जा सकती है । आज भी भारतवर्ष में 'खेड़ा नाम से व्यवहृत होने वाले अनेक गांवों की स्थिति विद्यमान है। दिल्ली के समीपवर्ती गांवों में आज भी 'खेड़ा खुर्द', 'खेड़ा कलां' आदि नामों से प्रसिद्ध प्रआवासीय संस्थितियां हैं। यमुना नदी अथवा अन्य नहरें इन गांवों के निकट पड़ती हैं । सहारनपुर स्थित आधुनिक 'कूअांखेड़ा' नामक गांव का स्वरूप अब भी प्राचीन
१. Tiwarkheda Plates of Nanaraja, Epi. Ind., XI, p. 279 २. Pattan Plates of Pravarasena II, Epl. Ind., XXIII, p. 86 ३. Sankheda Grant of Dadda IV, Epl. Ind. V, p. 39 ४. Gupta, Geography In Ancient Indian Inscriptions, p. 219 ५. (१) खेट-ग्राम (खुडच, पाकिस्तान)-Halsi Grants of Kakustha
varmana and Ravivarman, Ind. Anti. VI, pp. 23, 26 (२) खेटाहार ( सौराष्ट)-Prince of Wales Museum Grant of
Dhruvasena—II, Journal of the Bombay Branch of
the Royal Asiatic Society. New Serles. p. 70 (३) खेटक-प्रद्वार (गुजरात)-Bhāvanagara Plates of Dharasena
III, Epi. Ind. XXI, p. 183 (४) खेटकाहार (कैरा जिला, गुजरात)-Kaira Grant of Dharasena
IV, Ind. Ant. XV, p. 339