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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
महाकाव्य में ऐसी ही नायिका का चित्रण करते हुए कवि हरिचन्द्र ने एक लड़खडाती शब्दावली में एक सुन्दर पद्य का निर्माण भी किया है।'
सिद्धान्ततः मदिरा का सेवन निषिद्ध था। हम्मीर महाकाव्य में चाहमान सेना के एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा अलाउद्दीन की बहिन के हाथों से मदिरापान करने की घोर भर्त्सना की गई है ।२ मद्य-पान करने वाले व्यक्ति के सम्बन्ध में बहुत ही हीन विचार भी प्रकट किए गए हैं। उदाहरणार्थ मदिरा सेवन से अङ्ग-अङ्ग में पीड़ा पहुंचती है, धैर्य समाप्त हो जाता है, बुद्धि भ्रष्ट होती है, मुख से दुर्गन्ध आती है ५, चेहरा लाल हो जाता है तथा इन्द्रियों के व्यापार शिथिल पड़ जाते हैं" इत्यादि । फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में मदिरा पान का बहुत अधिक प्रचलन रहा था।
(ग) वेश-भूषा
वस्त्रों के विविध प्रकार
___ जैन संस्कृत महाकाव्यों के काल में प्रचलित वेश-भूषा के अन्तर्गत रेशमी वस्त्र (कौशेय), ऊनी वस्त्र (ौर्णकाम्बर), कपास के वस्त्र (कार्पास वाससः)
१. त्यज्यतां पिपिपिपिप्रिय पात्रं दीयतां मुमुमुखासव एव । ___ इत्यमन्थरपदस्खलितोक्तिः प्रेयसी मुदमदाद्दयितस्य ।। -धर्म०, १५.२२ २. अपीप्यत् तद्भगिन्या च प्रतीत्य मदिरामपि । —हम्मीर०, १३.८१ तथा
१३.६१-६४ ३. कुलं शीलं मतिर्लज्जाऽभिमानः स्वामिभक्तता। सत्यं शौचं च न क्वापि जृम्भते मद्यपायिनि ।।
-वही, १४.६४ ४. धर्म०, १५.१० ५. तदा चास्य मुखाद् गन्धः प्रससार मदोद्भवः । हम्मीर०, १३.६१ ६. धर्म०, १५.६, द्विस० १७.५८ ७. धर्म०, १५.२५; द्विस०, १७.५६-६० ८. कौशेयान्यध्वदर्शिनाम् । —द्वया०, १५.६८ तथा वराङ्ग०, ७.२१ ६. दर्शिताध्वीणकाम्बरः। -द्वया०, १५.६७ १०. प्रोणपोयत्वक्पटानाम् । -वही, १५.६८