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वस्तुपाल द्वारा धार्मिक स्थानों का जीर्णोद्धार तथा मन्दिर निर्माण
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि आलोच्य काल में मन्दिर निर्माण की और राजाओं की विशेष धार्मिक रुचि रही थी । ऐतिहासिक नायक श्रमात्य वस्तुपाल तथा तेजपाल ने माउण्ट आबु, उज्जयन्त पर्वत, स्तम्भतीर्थ, शत्रुञ्जय पर्वत, आदि धार्मिक तीर्थ स्थानों में स्थित अनेक जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया तथा जन सामान्य की सुविधा के लिए कुए तालाब आदि का निर्माण भी किया । वसन्तविलास, सुकृतसंकीर्तन आदि महाकाव्यों में इन तीर्थोद्धार सम्बन्धी गतिविधियों की विशेष चर्चा श्रई हैं । ' माउण्टप्राबु प्रशस्ति से भी इन तथ्यों की पुष्टि होती है। अभिलेखीय साक्ष्य बताते हैं कि वस्तुपाल तथा तेजपाल के धार्मिक स्थानों का निर्माण कार्य दक्षिण में श्रीशैल पर्वत तक, पश्चिम में प्रभासतीर्थं तक उत्तर में केदारनाथ तक तथा पूर्व में बनारस तक फैला हुआ था । 3 शत्रुञ्जय पर्वत पर अठारह करोड़, नब्बे लाख; गिरनार पर्वत पर बारह करोड़, अस्सी लाख तथा माउण्ट आबु पर बारह करोड़ तरेपन लाख तथा अन्य जनकल्याण कार्यों पर तीन सौ करोड़ चौदह लाख मुद्रानों के व्यय से इन धार्मिक स्थानों के पुननिर्माण का कार्य सम्भव हो पाया था । ४ जैन ऐतिहासिक महाकाव्यों के उल्लेखानुसार वस्तुपाल तथा तेजपाल ने विभिन्न स्थानों में जिन मन्दिरों, धर्मशालाओं, तालाबों आदि का जीर्णोद्धार किया अथवा जिनकी स्थापना की उनका विवरण इस प्रकार है—
का जीर्णोद्धार |
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१. श्ररण हिलवाड - पाटण -
- ईस्वी ११२६-२७ में पञ्चाशर पार्श्वनाथ मन्दिर
१.
२. स्तमतीर्थ - ( १ ) भीमेश के मन्दिर पर स्वर्ण-शिखर तथा ध्वजस्थापन (२) भट्टादित्य के मन्दिर में 'उत्तानपट्ट' स्थापना । (३) पूजनवन
६
Buhler. G., The Sukritasamkiratana of Arisimha, Indian Antiquary, Vol. XXXI, 1902, pp. 477-95.
Dalal, C.D., Vasanta Vilāsa Mahākāvya, Introduction, p. XVI. २. तेन भ्रातृयुगेन या प्रतिपुरग्रामाध्वशैलस्थलं वापीकूपनिपानकाननसरः प्रासादसत्रादिकम् । धर्मस्थानपरम्परा नवतरा चक्रेऽथ जीर्णोद्धृता तत्सङ्ख्यापि नबु यदि परं तद्वेदिनी मेदिनी ॥ - श्राबुप्रशस्ति
Dalal, C. D., Vasant., Introduction, p. xvi
३.
४. वही, पृ० १६
५. सुकृत ०, ११.२, वस्तुपालचरित, ७.६६
६. सुकृत०, ११.३, वस्तु०, ४.७२०
७.
सुकृत०, ११.४, वस्तु०, ४.७१६