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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
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प्राभूषणों के स्वरूप में कुछ न कुछ सूक्ष्म अन्तर रहा होगा । १ ३३. उरुजाल े कटि प्रदेश में धारण किया जाने वाला श्राभूषरण किन्तु यह 'मेखला' से भिन्न था। वराङ्गचरित में रानियों द्वारा आभूषण उतारे जाने पर 'मेखला', 'रसना', तथा 'उरुजाल' – इन तीनों का पृथक्-पृथक् प्रयोग हुना है । द्विसन्धान महाकाव्य में भी 'उरुजाल' का उल्लेख आया है । ४ टीकाकार के अनुसार यहाँ पर 'उरुजाल' को मेखला के पर्यायवाची शब्द के रूप में स्पष्ट किया गया है।
(च) पादाभूषण
३४. पादवेष्टक ६ – वराङ्गचरित महाकाव्य में इसका उल्लेख आया है । संभवतः यह पांवों का प्रङ्गद रहा हो ।
३५. नूपुर
-
- पायल को कहते हैं । नूपुरों में घुंघरू लगाए जाते थे । शिजित नूपुर, भास्वतकल नुपुर, कल नूपुर, मरिण नूपुर आदि कई प्रकार के नूपुर प्रचलित जैन संस्कृत महाकाव्यों में 'मरिण नूपुर ' ' तथा माणिवय नूपुर '
१०
ह
के उल्लेख मिलते हैं ।
निष्कर्ष
इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय में लगभग १२ प्रकार की आवासीय संस्थितयों पर विचार किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना सहज हो जाता है कि जैन संस्कृत महाकाव्यों के युग में जन-जीवन की आवासीय व्यवस्था वर्णव्यवस्था तथा जाति व्यवस्था के आधार पर विभक्त थी। भारत की भौगोलिक आर्थिक तथा राजनैतिक परिस्थितियों के मिश्रित प्रभावों के कारण प्रायः जनसाधारण से सम्वद्ध इन प्रावासपरक संस्थितियों के स्वरूप पर भी समयानुसारी
१. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४६, नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रदिपुराण में; पृ० २१६ - २० तथा वराङ्ग०, १५. ५७-५६
२. वराङ्ग०, १५.५८, तथा द्विस०, १.२६
३. वराङ्ग०, १५.५७-५६
__ द्विस०,
१.२६
४. च्युतोरुजाला गलितावतंसकाः । ५. च्युतोरुजाला पतितमेखला । - वही, पदकौमुदी टीका, पृ० १५
६. वराङ्ग०, १५.५६
७. वराङ्ग०, १५.५७, चन्द्र०, ६.३, प्रद्यु०, ८.८, नेमिचन्द्र शास्त्री, श्रादिपुराण में; पृ० २२१-२२
८.
जयन्त०,
१३.१७, वसन्त ०,
७.४
पद्मा०,
ε.
१०.
8.६२
पद्मा०,
९.६२