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धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं
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दिगम्बर परम्परा' प्राचार्य गुणवत
शिक्षावत कुन्दकुन्द-१. दिग्वत, २. अनर्थदण्डव्रत, १. सामायिक०, २. प्रोषध०, ३. अतिथि। ३. भोगोपभोग
४. सल्लेखना उमास्वाति --१. दिग्वत, २ देशव्रत, १. सामायिक, २. प्रोषध०, ३. भोगोप३. अनर्थदण्ड०
भोग०, ४. अतिथि समन्तभद्र-१. दिग्वत, २. अनर्थदण्ड०, १. देशव्रत, २. सामायिक०, ३. प्रोषध०, ३. भोगोपभोग०
४. वैयावृत्य० वसुनन्दि - १. दिग्वत, २. देशवत, १. भोगविरति०, २. परिभोगनिवृत्ति०, ३. अनर्थदण्ड०,
३. अतिथि०, ४. सल्लेखना० जटासिंह नन्दि-१. दिग्वत, २. भोगोप० १. सामायिक०, २. प्रोषध०, ३. अतिथि०,
३. अनर्थदण्ड० ४. सल्लेखना०
श्वेताम्बर परम्परा उमास्वाति-१. दिग्व्रत, देशव्रत, १. सामायिक०, २. प्रोषध०, ३. भोगोप०, ३. अनर्थदण्ड०
४. अतिथि० श्राक्कप्रज्ञप्ति-१. दिग्वत, २. अनर्थदण्ड०, १. सामायिक०, २. प्रोषध०, ३. देशव्रत,
३. भोगोपभोग ४. अतिथि अमरचन्द्र-१ दिग्वत, २. भोगोपभोग०, १. देशावकाशिक०, २. सामायिक०, ३. अनर्थदण्ड
३. अतिथि०, ४. सल्लेखना० हरिचन्द्र-१. दिग्वत, २. देशव्रत, १. प्रोषध०, २. भोगोप०, ३. परिमाण, ३. अनर्थदण्ड०
४. अतिथि० उपर्युक्त तालिका के तुलनात्मक विवरणों से स्पष्ट हो जाता है कि इन व्रतों के वर्गीकरण में प्राचार्यों की दृष्टि से तो मतभेद है किन्तु दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदायगत कोई मतभेद नहीं। डा. दयानन्द भार्गव के मतानुसार 'अणुव्रतों' एवं 'शिक्षाव्रतों के वर्गीकरण का आधार रुचिपरक है न कि तात्त्विक ।' गृहस्थ को अपनी रुचि के अनुसार इन बारह व्रतों का आचरण करना चाहिए। सामाजिक दृष्टि से इन व्रतों की पृष्ठिभूमि में सामाजिक न्याय एवं अहिंसा का यथासामर्थ्य आचरण करने के समाजशास्त्रीय प्राग्रह-अनुस्यूत हैं। धार्मिक दृष्टि से भी इन बारह प्रकार के व्रतों का पालन करने वाले व्यक्ति को मृत्यु उपरान्त सौधर्म आदि कल्पों में जन्म मिलने तथा अष्टगुण-ऐश्वर्य लाभ होने की मान्यताएं समाज
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१. वराङ्ग०, १५.११७-१२५ पर आधारित २. पद्मा०, २.२१२-३५, धर्म० २१.१२५-५० पर आधारित ३. Bhargava, Dayanand, Jain Ethics, Delhi, 1968, p. 125