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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
८. एकादश व्रत (प्रोषधोपवासव्रत)-पर्वो के अवसर पर 'प्रोषधों' का आचरण करना तथा पूर्ण उपवास रखना ।'
६. द्वादश व्रत (अतिथिसंविभागवत)-सभी जैनानुयायिों से प्राप्त करों को लौटाना तथा उनकी आर्थिक दशा सुधारने की आज्ञा देना ।।
३. धार्मिक कर्मकाण्ड एवं पूजा-पद्धति पंचोपचार एवं अष्टविध पूजन
जैन महाकाव्यों में 'पंचोपचार' तथा 'अष्टविधपूजन' के उल्लेख पाए हैं । 'पंचोपचार' के अन्तर्गत १. अावाहन २. स्थापन, ३. सन्निधिकरण, ४. पूजन तथा ५. विसर्जन आदि क्रियाएं आती हैं ।५ 'अष्टविध' जिन पूजा के अन्तर्गत जिनेन्द्र प्रतिमा को स्नान कराना, कपूर-चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों से जिन बिम्ब का लेप करना, दूर्वा, पुष्पादि समर्पण करना, अक्षत आदि पदार्थों से स्वस्तिक पक्तियों का निर्माण करना, नैवेद्य, फलादि चढ़ाना, जल चढ़ाना, दीप प्रज्ज्वलित करना, आदि क्रिया-कलाप प्रचलित थे। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में यह अष्टविध पूजन-विधि 'अष्टद्रव्य' पूजा के रूप में विहित है। अष्टद्रव्य पूजा के अन्तर्गत १. छत्र-चामरादि द्रव्यों, २. जल धारामों, ३. चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों, ४. तण्डुलों, ५. पुष्पादि मालाओं, ६. नैवेद्यों, ७. धूप और दीपकों, तथा ८. दाडिम आदि फलों से देवपूजा करने का विधान पाया है। पद्मानन्द महाकाव्य में जैन पूजा को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया गया है-(१) द्रव्यपूजा तथा (२) भावपूजा । 'द्रव्यपूजा' के अन्तर्गत उपर्युक्त अष्टविध पूजन क्रियाएं आती थीं तथा 'भावपूजा' के अन्तर्गत मुख्यतः स्तुतियों द्वारा गुणगान करना, सङ्गीत
१. कुमारपालप्रतिबोध, पृ० ८८ २. वही, पृ० ८८-८६ ३. वराङ्ग०, (वर्धमानकविकृत) १२.२३ ४. पद्मा०, ६.१००, तथा तु०अष्टधेति जिनपूजनं व्यधादष्टधाऽपि निजकर्म हिंसितुम् ।
-वसन्त०, १०.८१ ५. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० ८० ६. पद्मा०, ६.१००-११४, वसन्त०, १०.८२ ७. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० ७८ ८. ते द्रव्यपूजां विधिवद् विधाय, व्यधुजिनेन्द्रोरथभाबपूजाम् ।
-पद्मा०, ६.११५