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धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं
कर्मकाण्डपरक विधियाँ
पूजा आदि के अवसर पर विभिन्न प्रकार की कर्मकाण्डपरक विधियां सम्पादित की जाती थीं, जिनमें 'प्रदक्षिणा', 'अभिषेक', 'मन्त्रजाप', 'नमस्कार', 'स्वस्तिवाचन' आदि का अनुष्ठान होता था -
१. प्रदक्षिणा' - आराध्य वस्तु के बाएं से दाएं प्रोर चलते हुए तीन बार परिक्रमा करना । २. स्नपन प्रथवा श्रभिषेक - जिनबिम्ब का मौनपूर्वक स्नान । ३. मन्त्रजाप - मन्त्राक्षरों का जाप करना । ४. नमस्कार ५ — श्रञ्जलि
अन्तिम भाग के रूप में
।
शेषिका ७ – पूजा की करना । ७. अयं 5.
-
बांध का प्रणाम करना । ५. स्वस्ति वाचन - पूजा के देश, राज्य, नगर आदि को मङ्गल कामना करना समाप्ति पर सविनय स्थापित पुष्प, धूप दीप आदि को नति मन्त्रोच्चारण के साथ प्रतिमा प्रादि के ऊपर जल की धारा श्रलङ्करण' – प्रलङ्कार-वस्त्रादि से प्रतिमा को सजाना । ' अक्षत, पुष्प आदि मङ्गलद्रव्य प्रतिमा को समर्पित करना ।
छोड़ना । ८ प्रतिमा
०
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६. द्रव्यसमर्पण'
१.
२.
पूजा सामग्री
जैन संस्कृत महाकाव्यों में पूजा विधि के विभिन्न अवसरों पर माङ्गलिक द्रव्यों द्वारा पूजा करने का उल्लेख आया है । इस सम्बन्ध में के० एम० मुन्शी महोदय का मत है कि मध्यकालीन भारत में जैन तथा हिन्दू पूजा-पद्धति में कोई
धर्म ०, ६.५३, वराङ्ग०, २३.५३.५७, परि०, ११.७१
धर्म०, ६.४७, द्वया०, २.६४
३. वराङ्ग०, २३.६६
४. वही, २३.६२-६ε
५. वही, २३.७०
६. वराङ्ग०, २३.६६ - ७१, वसन्त ०, १०.८६
६.
७. वराङ्ग०, २३.७२
८.
वही, २३.६२, ६५, वसन्त०, १०.७३
8. विभूषणानि प्रतिभूषयन्तीम् । - वराङ्ग०, २३.६७
१०. कीर्ति०, ६.३६, बसन्त०, १०.७६
३३५
११. वराङ्ग०, २३.६६-६८, परि०, ११.७३-७५, पद्मा०, ३.१२६ कीर्ति०, ६.३७, वसन्त०, १०.७५