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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
(साड़ी), कंचुक (चोली ) प्रादि स्त्रियों के लोकप्रिय वस्त्र थे । श्राभूषणों की संख्या बढ़ती जा रही थी । स्त्रियों के प्रङ्ग-प्रत्यङ्ग में पहने जाने वाले लगभग ३५ प्राभूषणों का विवेचन किया गया है। प्रालोच्य काल में स्त्री- भोगविलास के मूल्यों से भी प्राभूषणों की संख्या व स्तर में वृद्धि होती जा रही थी। अधिकाधिक प्राभूषणों को धारण करना शान मानी जाती थी । स्वर्ण एवं रजत निर्मित प्राभूषणों के प्रतिरिक्त बहुमूल्य मणि, रत्नों प्रादि से निर्मित प्राभूषणों को उच्चवर्ग की स्त्रियों धारण करतीं थीं । प्राभूषणों का यह वैभव तत्कालीन राजपरिवारों एवं धनाढ्य वर्ग के लोगों की अपार समृद्धि का द्योतक है ।