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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
भिन्नता का प्रमाण है । ' ' के बाहुशीर्षे यौति केयूरम्' - व्युत्पत्ति के अनुसार कुछ विद्वान् 'केयूर' को भुजा के ऊपरी छोर पर पहने जाने वाले आभूषण के रूप भी स्पष्ट करते हैं ।
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२५. कटक – कड़े के समान एक प्राभूषण है । पद्मानन्द में मणिमय 'कटक' का भी उल्लेख श्राया है । ४
२६. कंकरण - स्त्री तथा पुरुष दोनों 'कङ्कण' पहनते थे। हाथ की दोनों कलाइयों में इसे पहना जाता था । 'कङ्कण' दक्षिण तथा वाम हाथों की दृष्टि से बने होते थे । नेमिनिर्वाण महाकाव्य में एक नायिका द्वारा भूल से दायें हाथ के 'कङ्करण' को बायें हाथ में तथा बायें हाथ के 'कङ्कण' को दायें हाथ में पहनने का वर्णन भी आया है । वसन्तविलास महाकाव्य में 'मरिण कङ्कण' तथा 'रत्न- कङ्कण' का भी उल्लेख प्राया है । ७
२७. वलय – 'वलय' भी कलाइयों धारण करने योग्य प्राभूषण होता था । यशस्तिलक में भैंसे के सींग से निर्मित 'वलय' का भी उल्लेख आया है । 'वलय' शंखों से भी निर्मित होते थे । १०
9. 'Keyūra and Angada have been clearly mentioned as synonyms in the Amarakosa. We have it there, 'Keyūram āngadam tulye'. But between them too, there is some difference in meaning. Or else how could these be used together in one verse in the two great epics, the Rāmāyaṇa and the Mahabharata? The difference in their meaning is explained by the Rāmāyaṇa-commentator Rāma in the following words: Angadam bahumūladhāryam bhūṣaṇam; Keyūram tadadhobhāgastham'.
—Satya Vrat, The Rāmāyana – A Linguistic Study, p. 39 २. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४७ ३. वराङ्ग०, १५.५८, चन्द्र०, १७.४६, पद्मा०, ४.७ ४. मणिमयकटके क्रमयोः । पद्मा०, ४.७
५. चन्द्र०, १५.१६, धर्म०, ८.८६ पद्मा०, ६.६०,
नेमि०, ८.७४,
वसन्त०, ७.२८
६. दक्षिणः कङ्कणं वामे वामश्चिक्षेप दक्षिणं । - नेमि०, ८.७३
७. वसन्त०, ७.२८ तथा ७.३
८. वराङ्ग०, १५.५७, द्वया०, १८.८६
६. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४८
१०. Gupta, Kanta, Indological Studies, Vol. III, Nos. 1-2, p. 45