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प्रावसिं-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
२६७ तथा पशुप्रों की त्वचा से बनाए गए वस्त्र' (त्वक्पट) का प्रचलन विद्यमान था। द्वयाश्रय महाकाव्य में सौराष्ट्र देश के लोगों की वेश-भूषा को 'पौर्णकाम्बर'२ के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त थी। इसी प्रकार सौराष्ट्र तथा पर्वतीय प्रदेशों के वस्त्रों को भी त्वक २ कहा जाता था। चीनी शिल्क आलोच्य काल का लोकप्रिय वस्त्र रहा था। इसी प्रकार 'रत्नकम्बल' एवं 'मणिकम्बल' भी वेश-भूषानों के सन्दर्भ में बहुमूल्य वस्त्र स्वीकार किये जाते थे । चन्द्रप्रभ० महाकाग्य में 'चित्रनेत्रपट '४ तथा द्वयाश्रय महाकाव्य में 'सक्ष्मवस्त्रतमः'५ प्रयोग भी वहत हल्के तथा बारीक कपडे की विशेषता को प्रकट करने के लिए किए गए हैं । नेपाल देश का 'रत्न कम्बल' भी इसी प्रकार की विशेषता के लिए प्रसिद्ध रहा था। इसी प्रकार 'सुघ्न' देश भी सूक्ष्मातिसूक्ष्म कपड़ा बनाने के लिए प्रसिद्ध था। द्वयाश्रय महाकाव्य में 'सर'आधुनिक 'टस्सर' तथा 'प्रीमक' -अाधुनिक 'लीनन' नामक वस्त्रों का भी उल्लेख आया है । इस प्रकार आलोच्य काल में कपड़ा उद्योग विशेष रूप से प्रगति पर होने के कारण विभिन्न प्रकार के उत्कृष्ट वस्त्रों का उत्पादन करने में सक्षम रहा था। सिले हुए वस्त्र
मालोच्य काल में वस्त्रों को सुई द्वारा सीकर बनाया जाता था।११ 'पट्यः' शब्द से दो सिले हुए वस्त्रों से अभिप्राय रहा था । १२ स्त्रियों एवं पुरुषों के द्वारा पहने जाने वाले विभिन्न प्रकार के वस्त्रों में निम्नलिखित विशेष रूप से उल्लेखनीय
१. तेषामौर्णपटानां सौराष्ट्राणाम् । -द्वया०, १५.६८ पर अभयतिलककृत
टीका, पृ० २३३ २. वही, पृ० २३३ ३. प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० २२६-२७ ४. चन्द्र०, ७.२३ ५. द्वया०, १६.५८ ६. परि०, ८.१६० ७. द्वया०, ३.५८ ८. वही, २.३६ ६. वही, १५.६७ १०. Narang, Dvyasraya, p. 199 ११. पट्यः सीवितवस्त्रद्वयलक्षणाः । -द्विस०, १.३ पर पदकौमुदी टीका, पृ० १६ १२. चन्द्र०, ७.२३