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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
का प्रयोग किया जाता था। द्विसन्धान महाकाव्य के अनुसार 'मुक्तावलि' का प्रयोग भी केशों के बांधने के लिए होता था।'
५. पट्ट-पट्ट पाँच प्रकार के कहे गये हैं—(१) राजपट्ट (२) महिषीपट्ट (३) युवराजपट्ट (४) सेनापतिपट्ट तथा (५) प्रसादपट्ट । स्पष्ट है कि 'पट्ट' नामक प्राभूषण का प्रयोग स्त्रियां व पुरुष दोनों करते थे। 'पट्ट' स्वर्णनिर्मित होते थे तथा स्त्रियों के 'पट्ट' में तीन शिखाएं होती थीं।
६. शेखर-जूड़े की माला को कहते हैं । (ख) कर्णाभूषण
७. कुण्डल ५-कानों में पहने जाने वाले गोलाकृति के आभूषण 'कुण्डल' कहलाते हैं । मध्यकालीन भारत में 'मणिकुण्डल', 'रत्नकुण्डल' आदि का भी विशेष प्रचलन रहा था। आदिपुराण के अनुसार मकराकृति के कुण्डलों का भी विशेष प्रचलन रहा था।
८. कर्णपूर-कर्णपूर 'कनफूल' को कहते हैं । कभी कभी इसके लिए 'कर्णावतंस' का प्रयोग भी किया गया है । ८ 'कर्णपूर' फूल के भी बनते थे। नेमिनिर्वाण महाकाव्य में 'मणि-कर्णपूर' का भी उल्लेख प्राप्त होता है, जिसकी प्राकृति गोल थी।
६. करिणका •-कानों की बालियों को कहते हैं । 'कणिका' स्त्रियाँ तथा पुरुष दोनों पहनते थे । यदि ये कुछ गोलाकार हों तो 'कुण्डल' कहलाते थे।
१. द्विस०, १.४३ २. पद्मा०, ६.५० तथा प्रादि०, १६.२३३ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २१० ४. द्विस०, १.२६, ४२ ५. वराङ्ग०, ७.१७, चन्द्र०, १३.४, नेमि०, ६.३५, पद्मा०, ६.५६, जयन्त०, १३.३२
. ६. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादि पुराण में प्रतिपादित भारत, प० २१८ ७. वराङ्ग०, १८.६, चन्द्र०, २.७, नेमि०, ११.६ ८. गोकुल चन्द जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४२-४३ ६. चक्रायमाणमणिकर्णपूरैः पाशप्रकाशै रतिहारहारैः । -नेमि०, १.३६ १०. द्वया०, १६.७२ ११. कनिंघम अलेक्जेन्डर, भरहुत-स्तूप, अनु० तुलसीराम शर्मा, दिल्ली, १९७५,
पृ० ३३