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श्रावास ब्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
रहह
२. अन्तरीय ' - स्त्रियों के नितम्बादि अधोभाग में धारण किए जाने वाले वस्त्र को 'अन्तरीय' कहा जाता था । रति-क्रीड़ा के अवसर पर अन्तरीयवस्त्रापनयन का उल्लेख आता है । 3 स्त्रियों के विषय में यह भी कहा गया है कि लज्जा को ढकने के लिए 'उत्तरीय' के साथ 'अन्तरीय' भी आवश्यक है । ४
३. अंशुक - जैन संस्कृत महाकाव्यों में 'अंशुक' का प्रयोग स्त्रियों के वस्त्र के रूप में किया गया है । ६ प्रायः इसे 'साड़ी' के रूप में भी स्पष्ट किया जाता है । संभवतः यह एक प्रकार का परिधान वस्त्र रहा होगा तथा 'अन्तरीय' एवं 'उत्तरीय' के ऊपर प्रोढ़ा जाता होगा ।
यज्ञ
४. कंचुक ७ – कंचुक' स्त्रियों के स्तनावरण वस्त्र को कहा जाता था। 5 रतिक्रीड़ा के अवसर पर पति द्वारा 'स्त्रियों के 'कंचुक' को खोलने का भी उल्लेख आया है । वसन्तविलास के अनुसार वस्त्र गाठों द्वारा बांधा जाता था । १० स्तिलक 'के अनुसार भी ' कंचुक' स्तनों को ढकने का ही वस्त्र था । ' १ इस स्थल पर टीकाकार ने इसका 'कूपासंक' अर्थ किया है । १२ कालिदास ने 'कंचुक' के अर्थ में ही स्तन-वस्त्र के रूप में 'कृपार्सक' का प्रयोग किया है । 13 इससे प्रतीत होता है कि गुप्तकाल में 'कूपासंक' वस्त्र ही मध्यकालीन भारत में 'कंचुक' के रूप में प्रसिद्ध
चम्पू
१.
द्विस०, १८.४, धर्म०, ४.१४, १५.३१, हम्मीर०, १३.१५ २. अन्तरीयमपरा पुनराशुभ्रष्टमेव न विवेद नितम्बात् । - ३. वही, १५.३१
- धर्म०, १५.३१
४. लज्जालुप्तोत्तरीयेण नान्तरीयेरण केवलम् । - द्विस०, १८.४
५. द्विस०, १.४२
६. रतेषु दष्टाघरमाहृतांशुकम् । द्विस०, १.४२
७. धर्म०, १५.३२, वसन्त० ८.५७
मोती चन्द्र, प्राचीन भारतीय वेशभूषा, प्रयाग, वि०, सं० २००७ पृ० ५५८
ε. धर्म०, १५.३२
१०.
वसन्त०, ८.५७
११. पीनकुचकुम्भपदर्प त्रुटत्कंचुकाः । यशस्तिलक०, पृ० १६
१२. कंचुकानि कूर्पासकाः । गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १३१, पाद टि० ८३ से उद्धृत
१३. मनोज्ञकूर्पासकपीडितस्तनाः । - ऋतुसंहार, ५.८
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