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प्रावास-व्यवस्था, खान-पान
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स्त्रियों के कपोलों पर कस्तुरी रस से मकरी का चिह्न बनाने का उल्लेख पाया है।' चरणों में लाक्षारस (यावक) लगाने का प्रचलन था। अोठों पर भी लाक्षारस लगाया जाता था। प्रांखों में काजल डाला जाता था ।४ स्त्रियाँ मस्तक पर चन्दक का तिलक लगाती थीं। हाथों को कुंकुम से रङ्गने की प्रथा भी रही थी। स्तनों पर केशर (रक्त कन्द), कपूर, कस्तूरी तथा कुंकुम आदि सुगन्धित द्रव्यों का लेप किया जाता था। इस प्रकार स्त्रियाँ अंग-प्रत्यंग को सौन्दर्य प्रसाधनों से अलंकृत करती थीं।
आलोच्यकाल में अधिकांश सौन्दर्य प्रसाधन वृक्षों के पुष्पों, पत्रों तथा सुगन्धित द्रव्यों से निर्मित होते थे। परिणामतः इन सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुमों ने आर्थिक दृष्टि से वृक्ष-उद्योग को विशेष रूप से विकसित किया था।
स्त्रियों के प्राभूषण
मध्यकालीन भारत में वेश-भूषा के अन्तर्गत स्त्रियों एवं पुरुषों, दोनों की
१. एणनाभिरसनिर्मितैकया पत्रभङ्गिमकरी कपोलयोः । -धर्म०, ५.५१
तथा-कुरुङ्गनाभीकृतपत्रभङ्गी। -कीर्ति०, ७.५८ २. सलाक्षिकपदन्यासा: कुङ्कुमै रञ्जिता इव । ----द्विस०, ७.३६ तथा इत्यम्बुजाक्ष्या नवयावकार्द्ररुषेव रक्तं पदयुग्ममासीत् ।
-धर्म०, १४.५४ ३. मेने जनो यावकरक्तमोष्ठम् । -धर्म०, १४.५७ ४. दृग्लेखनी कज्जलमजुलां यः । -धर्म०, १४.५८ तथा पद्मा०, ६.५१ ५. पारोप्य चित्रा वरपत्रवल्लीः श्रीखण्डसारं तिलकं प्रकाश्य ।
___ --धर्म०, १४.६० ६. नखपदविततिर्दधौ कुचान्तर्भुवि परिशेषितरक्तकन्दलीलाम् ।
..- धर्म०, १३.५४ ७. अधिजलमधिकुङ्कुमं बभौ करधृतमङ्गनया स्तनद्वयम् । -द्विस०, १५.३०
धर्म०, १३.६७ तथा यशःकीर्तिकृत सन्देहध्वान्तदीपिका टीका, पृ० २१२ ८. किमु विलुलित कुङ्कुमावलि किमधिकुचं नखरक्षतं नवम् ।
-द्विस०, १५.४२ ६. विशेष द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० २१५