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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१०. इड्डुरिका' - इसे आधुनिक 'पूरी' के रूप में जाना जाता है। चन्द्रप्रभ चरित महाकाव्य में पूरियों की गन्ध फैलने का भी उल्लेख पाया है ।
११. मोदक-लड्डू के नाम से प्रसिद्ध यह एक प्रमुख एवं लोकप्रिय मिष्टान रहा था ।५ अन्य भोज्य पदार्थ
___द्वयाश्रय महाकाव्य में अनेक प्रकार के मिष्टानों का उल्लेख पाया है जिनमें 'प्रोदश्विक', 'क्षरेय',७ दुग्ध निर्मित मिष्टान थे। 'दाधिक'८ दही से निर्मित होता था । फटे हुए दूध से 'कोलाट' नामक मिष्टान तैयार किया जाता था। जो से बने पदार्थ 'यव'१० तथा 'माष' से बनी मिठाई 'वटकिनी'' कहलाती थी।
द्वयाश्रय में उल्लिखित कुछ अन्य भोज्य पदार्थों में 'पुरोडास' (यज्ञावसर पर प्रयोग किए जाने वाला पकवान) शकुलि (जलेबी), सक्तु-धान (भुने हुए चावल), यवागु (चावल की खिचड़ी) आदि १२वीं-तेरहवीं शताब्दी के लोकप्रिय भोज्य पदार्थ रहे थे ।१२ मांस भक्षण
समाज में मास खाने का प्रायः प्रचलन रहा था । 3 वरांगचरित महाकाव्य के अनुसार हरिण, शश, वराह, आदि पशुओं का भी मांस खाने का प्रचलन था ।।४ द्वयाश्रय महाकाव्य के अनुसार निम्न जाति के लोग गोमांस भी खाते थे।१५ मांस को चावलों के साथ भी पकाया जाता था । इस प्रकार का भोजन 'मांसौदन' के नाम
१. चन्द्र०, १४.४६ तथा तु० पाठभेद-'इन्दुरिका' । २. अमृतलाल शास्त्री, चन्द्र० हिन्दी अनुवाद, पृ० ३४० ३. चन्द्र०, १४.४६ ४. द्वया०, १७.४०, -त्रिषष्टि०, ३.१.४३, तथा परि०, १२.११४ ५. मोदकाश्च प्रमोदकाः । त्रिषष्टि ०, ३.१.४३ ६. द्वया०, १६.५ ७. वही, १६.५ ८. वही, १६.५ E. Narang, Dvayāśraya, p. 194 १०. द्वया०, १५.७७ ११. वही, १८.६१ १२. Narang, Dvayasraya, pp. 194-95 १३. वही, पृ० १६३ १४. वराङ्ग, ६.२१ १५. द्वया०, २.८६