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श्श्रावांस व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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व्यवस्था में 'निगम' का महत्वपूर्ण स्थान था किन्तु स्पष्ट रूप से कहीं भी 'निगम' का व्यापारिक समिति' के रूप में उल्लेख नहीं आया है ।
४. बौद्ध साहित्य - बौद्ध-कालीन उत्तरी भारत १६ महाजनपदों में विभक्त था ।' मुख्यरूप से स्वतन्त्र राज्य 'रट्ठ' (राष्ट्र) कहलाते थे तथा राष्ट्र के भी दो उपभेद होते थे— 'जनपद' अर्थात् 'ग्राम' तथा 'निगम' अर्थात् 'पुर' २ | महावस्तुअवदान, दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुतनिकाय श्रादि बौद्धग्रन्थों में 'निगम' का ग्राम-नगर- जनपद प्रादि के साथ अनेक बार प्रयोग हुआ है । 3 बौद्धनिकाय-ग्रन्थों के उल्लेखानुसार 'निगम' में 'शाक्य', 'कौलिक', 'कुरु', 'मेदलुम्प' आदि जातियाँ
१. 'Some Pali texts have lists of famous independent sixteen Mahajanapadas into which northern India was divided and which flourished just before the Buddha's time (c. 567-487 B.C.) and most probably during his life time also. '
— Mahāvastu Avadāna, Vol. I, ed. Dr. Radha Gobinda Basak, Calcutta, 1963. Introduction, p. XXIII.
तथा - अंगुत्तरनिकाय, १.२१३, ४.२५२, २५६
२.
'Each of these states under the rule of an Independent monarch was dominated a raṭṭha of which the principal constituent parts were : (i) Janapada or the villages and (ii) nigam or the city.'
-De. G.D., Significance and Importance of Jātakās, Calcutta, 1951, p. 131
३. (क) ग्रामं वा नगरं वा निगमं वा हनध्वम् । – महावस्तु - अवदान, पृ० २० एव ग्रामे निगमेषु वा पुनः महाजनो भवति । - वही, पृ० ३८१
हि ब्राह्मणेहि ग्रामनिगमनग रजनपदेहि अण्वन्तेहि शाक्यानां देवडहे निगमे सुभूतिस्य शाक्यस्य सप्तघीतरो दृष्टा । — वही, पृ० ४६५
(ख) एकं समयं भगवा कुरूसु विहरति कम्मासघम्मं नाम कुरूनं निगमो - दीघनिकाय, महानिदानसुत्त २.१.१,
(ग) एकं समयं भगवा सक्केषु विहरति मेदलुभ्पं नाम सक्यानं निगमो । - मज्झिमनिकाय, धम्मचेतियसुत्त, ३६.१०२,
(घ) थुल्लकोट्ठिकं नाम कुरूनं निगमो तदवसरि ।
-- वही, रट्ठपालसुत्त, ३२.११,
(ङ) एकमिदाहं, महाराज, समयं सक्केषु विहरामि नगरकं नाम सक्यानं निगमो । संयुत्तनिकाय, कल्याण मित्तसुत्त, ३.१८.४७.