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प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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स्थल पर 'निगम' का Guild (श्रेणी) अर्थ करना किसी भी रूप से उचित नहीं
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बसाढ़ (प्राचीन वैशाली) से प्राप्त हुए गुप्तकालीन मिट्टी के मुद्राभिलेखों'श्रेष्ठि-सार्थवाह-कुलिक-निगम', 'श्रेष्ठि-कुलिक-निगम', 'कुलिक-निगम'२ आदि में पाए 'निगम' की व्याख्या करते हुए डा० ब्लॉस का कहना है कि उन दिनों पाटनिपुत्र में वर्तमान 'Chamber of Commerce' जैसे व्यापारिक सङ्गठन विद्यमान थे। अतः व्लॉख के अनुसार इन मुद्राभिलेखों में पाए 'निगम' का 'व्यापारिक सङ्गठन' अर्थ है।३ राधाकुमुद मुकर्जी भी उनका समर्थन करते हैं। किन्तु प्रार० डी० भण्डारकर एवं मजूमदार किसी भी प्रकार के सङ्गठितसमूह के अर्थ को अस्वीकार करते हुए 'निगम' का 'Town' अर्थ ही करते हैं । सचिन्द्रकुमार मैटी प्रभूति ऐतिहासिक भी ब्लॉख द्वारा सुझाये गए 'Chamber of Commerce' अर्थ को अत्यधिक प्राधुनिक मानते हुए, अस्वीकार कर देते हैं ।
वस्तुतः यहां पर भी 'निगम' पुर, जनपद प्रादि का व्यावर्तक है। जातककाल से ही नगर एवं ग्राम के प्रधानों द्वारा नगरों एवं ग्रामों के शासन को नियंत्रित किया जा रहा था । फलतः निगमों के उच्चाधिकारियों की सम्मिलितमुहर 'श्रेष्ठी' 'सार्थवाह' 'कुलिक' तत्कालीन शासकीय पदों की ओर संकेत करती
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१. Mookerji Radhakumud, Local Govt. in Ancient India, Oxford,
1920, p. 120 २. A.S. I., Ann. Rep., 1903-4, p. 104 ३. वही, पृ० १०४ ४. Mookerji, Local Govt. in Ancient India, p. 112 ५. Carmaichael Lectures Delivered in Calcutta University, 1918,
p. 170, fn. I ६. Majumdar, Corporate Life, p. 41
"The 'Chamber of Commerce' is quite a modern term and we are not at all sure whether this will suit our ancient Indian situation'.
-Maity, Sachindra Kumar, Economic Life of Northern
India, p. 157 5. Alteker, State & Govt. in Ancient India, p: 229;
तथा तु०-'सव्वे नेगमजानपदे' The Jataka, Vol. I, p. 149; ' नेगमा च एव जानपदा च ते भवं राजा आभन्तयम् । -दीघनिकाय, कुटदन्त सुत्त