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प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा
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मजूमदार ने इसे 'नगर' से सम्बन्धित माना है किन्तु इसे स्पष्ट नहीं किया संभवतः उनका अभिप्राय यहाँ 'नगरसभा' (Town Council) से हो ।'
___ तृतीय-चतुर्थ शती ईस्वी पूर्व के तक्षशिला से प्राप्त सिक्कों में भी 'नेगमा २ का ब्राह्मी तथा खरोष्टी लिपि में प्रयोग हुमा है। कनिंघम के अनुसार इन 'नेगमा' नामक सिक्कों को श्रेणियाँ प्रयोग में लाती थीं।
इस प्रकार ऐतिहासिकों के अनुसार ईस्वी पूर्व के सिक्कों, मुद्राभिलेखों तथा उत्कीर्णलेखों में 'निगम' का अभिप्राय या तो नगर अथवा ग्राम से है अथवा नगर अथवा ग्राम की 'सङ्गठित सभा' (Corporation) से ।४ 'निगम' को 'व्यापारिकसङ्गठन' से सम्बद्ध मानना यहां किसी भी रूप से उपयुक्त नहीं है। मजूमदार तथा भण्डारकर ने भी इन स्थलों में निगम' को नगर अथवा ग्राम की सङ्गठित सभा के रूप में स्वीकार तो कर लिया है किन्तु ऐसा मानना उचित नहीं जान पड़ता। प्राचीन काल में नगरों एवं ग्रामों को दान करने के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। इन उल्लेखों में अमरावती स्तूप के अभिलेखों में 'धनकटक' नामक मिगम को दान में देने का उल्लेख पाया है। इसी प्रकार, एक अन्य 'करहाटकनिगम' को दान के रूप में देने का उल्लेख भी प्राप्त होता है। स्टेन महोदय का विचार है कि 'करहाटकनिगम' से अभिप्राय 'करहाटक' नामक ग्राम से ही लेना चाहिए। किसी 'व्यापारिक सङ्गठन' अथवा 'नगर सङ्गठन' को दान में देना तर्कसङ्गत प्रतीत नहीं होता । अपने इस मत के समर्थन में स्टेन महोदय ने धम्मपद की एक टीका का उल्लेख करते हुए मालदेश में एक 'अनुपिय' नामक निगम का भी उल्लेख किया है। इस प्रकार शिलालेखादि के सन्दर्भ में भी 'निगम' ग्राम अथवा नगर के अर्थ में ही स्वीकार किया जाना युक्तिसङ्गत है।
9. Majumdar, Corporate Life, pp. 134-36 २. Cunningham, Coins of Ancient India, London, 1891, plate III,
p. 63 ३. वही, पृ. ६३ ४. Majumdar, Corporate Life, pp. 134-36 ५. Epigraphia Indica, Vol. XV, p. 263 ६. Hultzch, E, Zeischrift der Deutshen Morgenlandishen Gesells
chaft, 1886, Vol. XI, p. 62, f.n. 2; Indian Antiquery, 1892, Vol. XXI, p. 20; Luder's List, No. 705, Epigraphia Indica,
Vol. X, appendix ७. Stein, Jinist Studies, p. 15, fn. 20 ८. वही, पृ० १५ ६. वही, पृ० १५