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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
प्रयोग हुआ है । आचाराङ्गसूत्र' सूत्रकृताङ्ग, कल्पसूत्र, 3 प्रोपपात्तिकसूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्र आदि आगम ग्रन्थों में 'निगम' स्पष्ट रूप से निवासार्थक प्रवास भेद के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। जैन आगमग्रन्थों में प्राय: 'गाम' (ग्राम), 'गगर' (नगर) 'खेड' (खेट) 'कब्बड' (कर्वट) 'मडंब' (मडम्ब) 'पट्टा' (पत्तन ) दोग मुह ( द्रोणमुख) 'अगर ' ( प्राकर) 'आसम' (असम) 'सण्णिवेश' (सन्निवेश) 'रिगम' ( निगम ) ' रायहारिण' (राजधानी) के प्रतिरिक्त 'सम्बाह' (सम्वाह) 'घोस' (घोष ) 'पुडभेयरण' (पुटभेदन) आदि आवास भेदों की विभिन्न पारिभाषिक संज्ञाएं उपलब्ध होती हैं । प्राचीन भारत में प्रावास भेदों की इस प्रकार की संज्ञाएं देशकाल के अनुसार पृथक्-पृथक् रही हैं । अर्थशास्त्र के अनुसार राज्य - विभाजन एवं प्रशासन की दृष्टि से नगरों एवं ग्रामों को 'स्थानीय', ( आठ सौ ग्रामों का समूह), 'द्रोणमुख' ( चार सौ ग्रामों का समूह ) 'खार्वटिक' ( दो सौ ग्रामों का समूह ) ' संग्रहण' ( दस गाँवों का समूह ) श्रादि इकाइयों में विभक्त किया
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१. तु० – गाम, नगर, खेड, कव्बड, मडम्ब, पट्टण, दोरणमुह, आगर, असम, सन्निवेश, निगम, रायहाणि ।
-Ayārāmgasūtra, ed., H. Jacobi, London, 18821, 7.6'
२. तु० – गाम नगर, खेड, कब्बड, मडम्ब, दोरणमुह, पट्टन, आसम, सन्निवेश निगम, रायहाणि ।
- Sūyagadāmgasūtra, ed., Nirnayasāgara Press, Bombay, 1880, II. 2.13
३. तु० – गाम, आगर, नगर, खेड, कव्बड, मडम्ब, दोणमुह, पट्टण, असम, सम्बाह, सन्निवेश, निगम, घोस, पुडभेयरण ।
Kalpasūtra of Bhadrabāhu, ed. H. Jacobi, Vll, ( 1879), 89
४. तु० – गाम, आगर, नगर, खेड, कव्बड, दोरणमुह, मडम्ब, पट्टण, प्रासम निगम, सम्वाह, सन्निवेश ।
—Aupapātikasūtra, ed. E. Leumann, VIII, ( 1883 ), 53
५. तु० – गाम, नगर, रायहारिण, निगम, नागर, पल्ली, खेड, कब्बड, दोगमुह,, पट्टन, मडम्ब ।
— Uttarādhyayanasūtra, Calcutta, 18:9, XXX, 16