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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
नासिक प्रशस्ति' में 'प्राकर-अवन्ति' का उल्लेख होने से भी यह सिद्ध होता है कि 'प्राकर' नगर को भी कहते थे। संभवतः नगर के समीप होने के कारण 'पाकरअवन्ति' संज्ञा प्रचलित हो गई होगी।
६. खेट
आगम ग्रन्थों की टीकात्रों के अनुसार मिट्टी की दीवारों से वेष्टित 'खेट' कहलाता है। सूत्रकृतांग-टीका दीपिका तथा प्रादिपुराण के अनुसार 'खेट' नदी तथा पर्वत से घिरा हुआ नगर विशेष होता है ।५ समराङ्गण सूत्रधार ने 'खेट' को नगर तथा ग्राम के मध्य रखा है । ६ हेमचन्द्र विस्तार की दृष्टि से 'खेट' को 'पुर' का आधा भाग मानते हैं । जनसंख्या के प्राधान्य की दृष्टि से खेट शूद्रों के निवास स्थान माने गए हैं । विश्वकर्मावास्तुशास्त्र के अनुसार 'खेट' नामक नगर की स्थिति जङ्गल के मध्य मानी गई है तथा इसमें शबर, पुलिन्द तथा मांसजीवियों का निवास होता था । शिलालेखों के साक्ष्यों से पुष्ट होता है कि 'खेट' नदी के तीरस्थ ग्राम थे।
१. Epigraphia Indica, VIII, p. 60 २. Gupta, P., Geography In Ancient Indian Inscriptions, p. 15 ३. मडम्बखेटान्पुराणि राष्ट्राणि। - वराङ्ग०, १२.४४ खेट कर्वटमटंबचयेन लोके० । -प्रद्युम्न०, ५.११, खेटसहस्रां प्रपालक:
-पद्मा०, १६.१६८ तथा त्रिषष्टि० २.४.२६३ ४. धूलिप्राकारपरिक्षिप्तम् ।– (उत्तर० टीका); धूलिप्राकारोपेतम् । -(कल्प०
टीका) Jinist Studies, पृ० ६ पर उद्धृत । ५. नद्यद्रिवेष्टं परिवृत्तममित: ।-(सूत्रकृताङ्ग टीका) वही, पृ० ६ तथा तु०
प्रांशुप्राकारनिबद्धानि क्वचिन्नद्यद्रिवेष्टितानि वा खेटानि । ६. भारतीय वास्तु शास्त्र, पृ० १०४ ७. अभिधान चिन्तामणि, ४.३८ । ८. भारतीय वास्तु शास्त्र, पृ० १०५ ६. खेटस्य वास्तुभूमिस्तु प्राय: काननमध्यगा। शबरश्च पुलिन्दैश्च संयुता मांसजीविभिः ॥ -विश्वकर्मावास्तुशास्त्र ८.२० वासुदेव शास्त्री, तंजौर, १९५८, पृ० ८०