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-राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
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छोड़ दो जाती थी । ' हम्मीर० में दोनों पुत्रों को राजा प्रसन्न करना चाहता है।" रानी का भी उत्तराधिकार पर विशेष हस्तक्षेप रहता था । प्रद्युम्न० में राजा कालसंवर ने अपनी रानी को दिए वचनों के अनुसार प्रद्युम्न को ही राजा बनाया । अन्य महाकाव्यों में भी उत्तराधिकार सम्बन्धी राजपरिवार का संघर्ष प्रतिपादित किया गया है । जयन्तविजय में राज्य प्राप्त करने के लिए भाई भाई में भी संघर्ष की स्थिति प्रा गई थी । ४
उत्तराधिकार सम्बन्धी मन्त्ररणा
उत्तराधिकार के प्रश्न पर विचार विमर्श करने के लिए राजा मन्त्रियों से भी परामर्श लेता था । मन्त्रियों, पुरोहितों के परामर्श सहित राज्य के उत्तराधिकारी का चुनाव करना वास्तव में तत्कालीन राजनैतिक श्रावश्यकता भी थी । प्रभावक चरित के अनुसार राजा जयसिंह के उत्तराधिकारी के चुनाव के लिए एक सभा बुलाई गई । उसमें एक युवक की परीक्षा ली गई, किन्तु वह युवक राजा जयसिंह एवं उसके सभासदों की दृष्टि में राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में उपयुक्त नहीं था । तदनन्तर कुमारपाल सभा के सम्मुख उपस्थित हुआ । कुमारपाल अपने राज्योचित गुणों के कारण तथा पराक्रम के कारण सभी सभासदों को स्वीकृत था ।
वराङ्गचरित में राजा धर्मसेन को प्रमात्य वर्ग द्वारा राजकुमार वराङ्ग ही उत्तराधिकारी बनाने का परामर्श दिया गया । चन्द्रप्रभचरित में चक्रवर्ती अजितसेन ने अनेक राजाओं की उपस्थिति में अपने पुत्र का राज्याभिषेक किया 15
जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्रत्यक्षतः राजा के प्रति किसी प्रकार की अनास्था एवं विश्वास की भावना के दर्शन नहीं होते । मन्त्रिमण्डल तथा राजा के मध्य
१. परिशिष्ट०, १.५३
२. हम्मीर०, ४.४१
३. प्रद्युम्न०, ४.६१
४. जयन्त ०, ५.४३
५. मेरुतुङ्ग, प्रबन्धचिन्तामणि, सम्पादक जिनविजय मुनि, कलकत्ता, प्रकाश ४, पृ० ७८
६. तु० - लक्ष्मीशंकर व्यास, महान् चौलुक्य कुमारपाल, पृ० ८४-८५
७.
वराङ्ग०, ११.५६ तथा २६.४३
८. चन्द्र०, ७.३०