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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
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दान की भी विशेष प्रशंसा की गई है ।" संक्षेप में राजसी ऐश्वयं भोग का मूल्य इस विधि से संकेतित है ।
२. पाण्डुक निधि - इस निधि के अन्तर्गत, गेहूँ, चावल, जौ, चना आदि अन्न परिगणित हैं । 3 कृषिपरक उत्पादन से सम्बन्धित सम्पत्ति 'पाण्डुकनिघि' कहलाती थी ।
३. पिंगल निधि ४ - इस निधि के अन्तर्गत स्त्रियों तथा पुरुषों के विभिन्न प्रकार के आभूषणों की स्थिति स्वीकार की जाती है । कुण्डल, चन्द्रहार, मरिण - मेखला आदि विभिन्न प्रकार के रत्न समूहों से निर्मित श्राभूषण इसमें परिगणित किए गए हैं । ६ सौन्दर्य प्रसाधन एवं साजसज्जा के उपभोग परक मूल्य का यह निधि प्रतिनिधित्व करती है ।
४. पद्मनिधि ७ - इस निधि के अन्तर्गत विविध प्रकार के वस्त्र लाते हैं रत्नकम्बल भी इसी में परिगणित है । वस्त्रादिक सम्पत्ति की अवधारणा 'पद्मनिधि' से संपुष्ट होती है ।
५. महाताल निधि १० – इसके अन्तर्गत सोने, चांदी, शीशे, लोहे श्रादि धातु के बर्तन परिगणित हैं । ११ धातुपरक बहुमूल्य वस्तुनों का इस निधि से
सम्बन्ध है |
६. शंखनिधि १२ विभिन्न प्रकार के वाद्ययन्त्र इस निधि के अन्तर्गत समाविष्ट हैं । १३ सङ्गीत प्रादि ललित कलानों के वैभव की ओर यह निधि इङ्गित करती है ।
१. त्रिशष्टि०, ३.७.१५८-५६
चन्द्र०, ७.१६, वर्ष०, १४.२७
२.
३. वर्ध०, १४.२७
४.
चन्द्र०, ७.२०, वर्ध०, १४.२८
५. वर्ध०, १४.२८
६.
७.
चन्द्र ०, ७.२०
चन्द्र०, ७.२३, वर्ध०, १४.३२
८.
चन्द्र०, ७.२३
६. वर्ध०, १४.३२
१०.
११. चन्द्र०, ७.८४
१२. चन्द्र०, ७.२२, वर्ध० १४.३१ १३. वर्ध ०, १४.३१
चन्द्र०, ७.२४, वर्ध०, १४.३०