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________________ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय १९३ दान की भी विशेष प्रशंसा की गई है ।" संक्षेप में राजसी ऐश्वयं भोग का मूल्य इस विधि से संकेतित है । २. पाण्डुक निधि - इस निधि के अन्तर्गत, गेहूँ, चावल, जौ, चना आदि अन्न परिगणित हैं । 3 कृषिपरक उत्पादन से सम्बन्धित सम्पत्ति 'पाण्डुकनिघि' कहलाती थी । ३. पिंगल निधि ४ - इस निधि के अन्तर्गत स्त्रियों तथा पुरुषों के विभिन्न प्रकार के आभूषणों की स्थिति स्वीकार की जाती है । कुण्डल, चन्द्रहार, मरिण - मेखला आदि विभिन्न प्रकार के रत्न समूहों से निर्मित श्राभूषण इसमें परिगणित किए गए हैं । ६ सौन्दर्य प्रसाधन एवं साजसज्जा के उपभोग परक मूल्य का यह निधि प्रतिनिधित्व करती है । ४. पद्मनिधि ७ - इस निधि के अन्तर्गत विविध प्रकार के वस्त्र लाते हैं रत्नकम्बल भी इसी में परिगणित है । वस्त्रादिक सम्पत्ति की अवधारणा 'पद्मनिधि' से संपुष्ट होती है । ५. महाताल निधि १० – इसके अन्तर्गत सोने, चांदी, शीशे, लोहे श्रादि धातु के बर्तन परिगणित हैं । ११ धातुपरक बहुमूल्य वस्तुनों का इस निधि से सम्बन्ध है | ६. शंखनिधि १२ विभिन्न प्रकार के वाद्ययन्त्र इस निधि के अन्तर्गत समाविष्ट हैं । १३ सङ्गीत प्रादि ललित कलानों के वैभव की ओर यह निधि इङ्गित करती है । १. त्रिशष्टि०, ३.७.१५८-५६ चन्द्र०, ७.१६, वर्ष०, १४.२७ २. ३. वर्ध०, १४.२७ ४. चन्द्र०, ७.२०, वर्ध०, १४.२८ ५. वर्ध०, १४.२८ ६. ७. चन्द्र ०, ७.२० चन्द्र०, ७.२३, वर्ध०, १४.३२ ८. चन्द्र०, ७.२३ ६. वर्ध०, १४.३२ १०. ११. चन्द्र०, ७.८४ १२. चन्द्र०, ७.२२, वर्ध० १४.३१ १३. वर्ध ०, १४.३१ चन्द्र०, ७.२४, वर्ध०, १४.३०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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