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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
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५०. निम्ब२ (नीम)
४६. केतकी' ५१. शिलिध्र
, (ग) पशुपालन व्यवसाय पालतू पशु
कृषि उद्योग का पशु पालन व्यवसाय से भी घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। हल आदि चलाने, अनाज की चुटाई करने तथा खेतों को उर्वरा बनाने में पशुनों से विशेष सहायता ली जाती थी। पालोच्य काल में पशुपालन व्यवसाय प्रगति पर था। गाय, भैस बैल, ऊँट, घोड़ा आदि पशुओं को पालने की विशेष चर्चा प्राप्त होती है।४ वजों में गायों को पालने तथा स्वादिष्ट दूध देने वाली उत्तम मैंसों का भी उल्लेख पाया है ।५ बैलों के झुण्डों द्वारा जलाशय में पानी पीने के लिये जाने का उल्लेख भी पाया है।६ 'घोष' नामक ग्राम इस काल में पशु-पालन के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हो चुके थे । 'गोष्ठ महत्तर' द्वारा दही पोर घी द्वारा राजा का स्वागत करने के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि अहीर आदि जातियां पशुपालन व्यवसाय करती थीं । गाड़ियों को चलाने के लिए प्रायः बैलों अथवा ऊंटों को प्रयोग में लाया जाता था। घोड़े, हाथी, ऊँट, खच्चर, गधे आदि से भी बोझा ढोने का कार्य लिया जाता था। युद्धोपयोगी पशु
पशुओं में से घोड़े, हाथी, खच्चर, ऊंट, बैल आदि का सेना में भी
१. वराङ्ग०, ७.२८, जयन्त०, १३.२८, प्रद्यु०, ११.८७, वसन्त०, १०.७५,
कीर्ति०, ७.५० २. वराङ्ग०, ७.४१ ३. प्रद्यु०, ११.८७, वसन्त०, ६.२२ ४. वराङ्ग०, ०.१५, पद्मा०, १०.४६ ५. निर्गुणः स्मारितकामधेनुव्रजा यत्र गवां विभान्ति ।
स्वादिष्टदुग्धेन मुधासुधापि यासां महिष्यश्च मनोहरास्ता: ॥ ___-जयन्त० १.३१ तथा वराङ्ग०, २१.४७, चन्द्र०, २.१२३, धर्म०, ४.३० ६. चन्द्र. १.६५ ७. योषस्त्वाभीरपल्लिका । अभि० ४.६७ तथा तु०-वराङ्ग०, १.२६ ८. वही, तथा तु०-संभ्रमगोष्ठमहत्तरः ।
पथि पुरो दधिसपिरुपायनान्युपहितानि । चन्द्र०, १३.४१ ९. वराङ्ग०, ६.१५, चन्द्र०, २५-२६