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मैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
घृत (घी) गुड़ आदि में पानी तथा अन्य सदश वस्तुओं को मिलाकर बेच देते थे। इसी प्रकार प्रवाल (मूंगा), मुक्ता (मोती), मरिण तथा सोने आदि में भी सस्श नकली वस्तुओं को मिलाकर बेचने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के लोगों के लिए दण्ड के रूप में पशु-जीवन मिलने की धार्मिक मान्यता प्रसिद्ध थी। इसी प्रकार मापतौल सम्बन्धी बेईमानी करने वालों की भी यही सजा कही गई है।
(ङ) शिल्प व्यवसाय श्रेरिण-व्यवसाय तथा अष्टादश श्रेणियां
आर० सी० मजूमदार महोदय के अनुसार 'श्रेणि' वह विशिष्ट शब्द है जो व्यापारियों अथवा शिल्पियों के 'सङ्घठन' का परिचायक है।' भिन्न-भिन्न जाति के किन्तु समान व्यवसाय तथा उद्योग अपनाने वाले लोगों के सङ्गठन की स्थिति को 'श्रेणि' का वैशिष्ट्य स्वीकार किया जाता है । बौद्ध जातक ग्रन्थों तथा अभिलेखों में भी 'श्रेणि' के उल्लेख प्राप्त होते हैं। मजूमदार महोदय के अनुसार श्रेणियों की संख्या १८ स्वीकार करना एक परम्परागत मान्यता रही है। उन्होंने स्वयं विभिन्न व्यवसायों के आधार पर २७ श्रेणियों को सूची प्रस्तुत की है।'
१. वराङ्ग०, ६३५ २. वही, ६.३६ ३. वही, ६.३५,३६ ४. ये वञ्चकाः कूटतुलातिमानः परोपतापं जनयन्ति नित्यम् ।
-वही, ६.३३ ५. रमेशचन्द्र मजूमदार, प्राचीन भारत में संघटित जीवन, सागर, १९६६,
पृ० १८ ६. वही, पृ० १८ ७. वही, पृ० १८ ८. वही, पृ० १८ तु०-१. लकडी का काम करने वाले बढ़ई (जिनमें पेटिका का निर्माण,
चक्र-निर्माण, गृह निर्माता तथा सभी प्रकार के वाहन बनाने बाने आदि सम्मिलित हैं) । २. सोना, चाँदी, प्रादि धातुओं का काम करने वाले। ३. पत्थर का काम करने वाले । ४. चर्मकार ५. दन्तकार ६. प्रोदयंत्रिक (पनचक्की चलाने वाले) ७. वसकर (बांस का काम करने वाले) ८. कसकर (ठठेरे) ६. रत्नकार (जोहरी) १०. बुनकर (जुलाहे) ११. कुम्हार १२. तिल-पिषक (तेली) १३. फूस का काम